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खोखला वट वृक्ष

 दावों का खोखला होना, वादों का खोखला होना  🪴🌾 दावों का खोखला होना , वादों का खोखला होना । सह जाता है, रह जाता है कह जाता है, ज़माना लेकिन,  उस गली के मोड़ पर,  बरगद का खोखला होना , करवट की नींद तोड़ गया। अतीत की बहुत बातें कह गया, जैसे हर पल जीवन का ढह गया । जीवन में खोखली पोल रह गई,  संतो के ठहराव, मन संताप बिसराव।  जेठ की छांव ,बरसात से बचाव,  देव दनुज, मनुज खगकुल की आस,  कोटर  शुक दरख्त  खोखले की सरसराती हवा। जड़े कमज़ोर कर गया छाया खो गई,  खोखले तन,मन,निर्जन रेत उग गई ।  पहचान खोखले दरख्त क्यों नहीं होते ।  माइलस्टोन हो न हो दरख्त हो जरुरी , खोखलेपन से पहले उसके वंश संभाल लो, खग किलकारी बचालो,हरियाली बना लो। झंझावात से बचालो,और प्राणवायु बना लो। खोखले पर  खेल नहीं ,कोई संत नहीं आते, कोई बसन्त नहीं आता। कोई गीत नहीं गाता।।🌾🪴                        **********

माँ

 माँ तेरे अक्षर चन्द्र बिन्दी रखते है । शशि शेखर शायद तुझमें ही बसते है।  ¤¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤¤

लहुराबीर

  लहुराबीर ******** बनारस की अपनी यादें स्मृतियों के कोने में किसी न किसी रुप में मन में हिचकोले लेती रहती है, बाढ़ के पानी में लहुराबीर चौराहे का चक्कर लगाना और गर्मी के मौसम में बसन्तबहार में घुसकर फ्री की लस्सी पीने की जुगाड़ बैठाना, स्टूडेंट लाइफ की कारिस्तानी, अब याद आती है और बाबू सुरेन्द्र प्रताप सिंह (डीआईजी कॉलोनी आरआई बंगले के पास पुलिस लाईन के समीप आवास)शायद उन्हें नियाग्रा में इडली, दोसा खिलाने से लेकर लस्सी पिलाने में खूब आनन्द आता था, एक कारण था कि भाई अरविन्द सिंह(डीआईजी कॉलोनी निवासी)की बातों में फंस जाना दूसरे पक्के ठाकुर होने की मर्यादा और तीसरे हम सब साथ के सह यात्री विद्यार्थी भी थे। बसन्तबहार के पीछे की ओर भाई प्रजानाथ शर्मा कांग्रेस के युवा नेता उनके इशारे पर कुछ सामान क्रेडिट पर आते रहते थे और मित्र लोग-बाग वीर चन्द्रशेखर आजाद की तरह कम मूंछ होने पर भी उमेठने के लिए तत्पर रहते थे। डाॅ अब्बासी,अदील अहमद आदि भी थे लेकिन इन लोगों के क्लास अलग-अलग होने से वापसी में प्रायः छूट जाते थे, लेकिन संबंधों में परस्पर स्नेह समान था। प्रकाश टाकीज का एक किनारा राजनेता बनाने की

रामोदर साधु या नागरी प्रचारिणी के रा.सा.या आजमगढ़ के केदारनाथ पाण्डेय या सांकृत्य गोत्र :RAHUL SANKRITYAN

  रामोदर साधु या नागरी प्रचारिणी के रा.सा.या आजमगढ़ के केदारनाथ पाण्डेय या सांकृत्य गोत्र :RAHUL SANKRITYAN ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने नागरी प्रचारिणी का कार्यभार छोड़ दिया था लेकिन मन से अपने को अलग नहीं कर पाए थे । उन्हीं दिनों लेख प्रकाशित हुआ लेखक रा.सा.था । द्विवेदी जी के लिए पता करना उनकी जिज्ञासा और कौतूहल दोनों विषय बन गये , पता चला कि गोवर्धन पाण्डेय या पाण्डे का बेटा रामोदर साधु ही रा.सा.है। इस बालक का जन्म वैशाख कृष्ण अष्टमी रविवार 1950 विक्रमी अर्थात् नौ अप्रैल 1893ई० को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद स्थित दूलहपुर स्टेशन से छह मील उत्तर दिशा में पंदहा गाँव कनैला के निवास करने वाले संस्कारी किसान के यहाँ हुआ है । इस साधु की माँ का नाम कुलवंती था। बालक की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा में रानी की सराय पढ़ने जाना का था , बालक का नाम केदारनाथ पाण्डेय रखा गया,किन्तु मन के धनी एक आध महीने बडौरा गांव समीप में पढ़ाई किए, फिर रानी की सराय पाठशाला में भर्ती हुए। यह जगह जौनपुर-बनारस मार्ग पर था। उस समय वर्णमाला जमीन की मिट्टी पर लिखकर सीखना होता था। बाद

प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में

 प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में,  *********************** प्रभु चाहे रहो हिमगिरी या  सघन वन में , मैं रखता प्रतिपल  अपने मन में । निराकार साकार परब्रह्म   चिरन्तन में,  बसो नित ही  मेरे अन्तस्तल में । तुम्हीं अनमोल रतन इस जीवन में ,  पालक तारक मेरे  सुख दुःख के ।  जैसे भौरें पलते कुसुमित  वन में,  वैसे ही नित  बस जाते मेरे मन में । प्रभु आप ही सासों में संकल्पों में,  व्यवहार भरे जीवन के सुर तारों में । आप ही दिन में,  आप ही रातों में,  आप ही शक्ति में,  आप ही भक्ति में । दुखियारों के सारे  दुःख हरते हो , प्रतिपल रख लो अपनी ऑखों में । चराचर ब्रह्म जगत  विधाता आपही हो,  डूब रहे  के संकट तो  पल में  हरते हो । प्रभु चाहे रहो सागर में या  सघन वन में,  मैं सेवक रखता आपको प्रतिपल अपने मन में ।।                *******

गिरगिट का रंग

आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया । ना जाने कैसा वक्त आ गया । श्वान सम्बोधन से उकताया हुआ । माया,मद,मोह, लोभ,और प्रीति में छा गया । आदमी तन मन से गिरगिट में समा गया । आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया । सर्प, बिच्छू के दंश से उपचारित हो सके हैं । भय की बात कौन करता है यहाँ । उभय तो रोम -रोम समा गया । आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया । इस उभयवादी से सत्य भी छला गया । दलबदल की राजनीति कल की बात थी । तन्त्र अब दिल बदलने तक तो आ गया । आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया ।।                   *********

कल

दिनमान से पहले होता कलरव ,होता कल्लोल चित चपल ।  अब की सुधि कह गये कबीर , विचारों में त्यागें कल ।  युग दोष समाया जीवन में , मन्वन्तर युग में ही है कल ।  जन-जनमत के भेद को जान , मनुज नित निरख संभल । दिनमान से पहले होता कलरव ,होता कल्लोल चित चपल । अब की सुधि कह गये कबीर , विचारों में त्यागें कल ।  तटिनी गतिमान बनी रहती ,अहर्निश जन-मन हित प्रतिपल ।  तट आहट देती जन-जन को , हर क्षण कहती कल-कल ।  कल को आधार बना लें , सजालें स्वयं का जीवन सम्बल ।  अतीत की प्रतीति होती सुनीति,इसी से होता सब जन सफल ।  दिनमान से पहले होता कलरव ,होता कल्लोल चित चपल । अब की सुधि कह गये कबीर , विचारों में त्यागें कल ।  परिणति भाव भरे विनीत ,अनीति त्याग मन कर विमल ।  सोच कल को विषय विकार के , समाज का पी रहे गरल ।  एकाकी ही जन हर रहे ,शिवत्व भाव से हो रहे जन निर्मल।  मोह-माया भाव तिलांजली देकर ,स्नेहिल मन चलता चल । दिनमान से पहले होता कलरव ,होता कल्लोल चित चपल । अब की सुधि कह गये कबीर , विचारों में त्यागें कल ।  आत्मबल से हो सहज ,वर्तमान में कभी न कहें कल ।  सपनों में निर्झर बहा करे रहे ,उज्ज्वल हीरक और धवल । भूलें

बिजली की स्फूर्ति के महाराजा बिजली पासी

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बिजली की स्फूर्ति के महाराजा बिजली पासी ****************************** (यह आकाशवाणी एफएम वर्ष  2000 पर सजीव  स्वयं प्रसारण  के लिए श्रीमती रमाअरुण त्रिवेदी को किले से दी गई जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है) महाराजा बिजली पासी लखनऊ के प्रसिध्द राजाओं में से एक थे ,उनकी स्मृति में आज भी धरोहर के रूप में पासी किला या बिजली पासी किला खण्डहर रूप में स्थित है,कहते है कि महाराजा बिजली पासी  की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी, जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा यह स्थान लखनऊ से कानपुर आजाद इन्जिनियरिग कालेज मार्ग पर है,बिजली पासी के कार्य में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर  नटवागढ़ की स्थापना की।यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी

मेरी काशी

              मेरी काशी            *********   माँ गंगा का मिलता रहें    आशीष     ऐसा हो निशि-दिन का प्रकाश   ,   जिस जन के मन में रहता श्वास   उसके पूरन    हो जाते सारे विश्वास   | |  माँ गंगा का मिलता    आशीष     भाग्य हमारा हम बसते काशी   , नव निर्माण सहेज कर लें   उपयोगी अपना जीवन आकाश   | |  माँ गंगा का मिलता रहें    आशीष     ऐसा हो निशि-दिन का प्रकाश   ,   जिस जन के मन में रहता श्वास   उसके पूरन    हो जाते सारे विश्वास   | |  तीन लोक से न्यारी में   ऐसा हो निशिदिन का प्रकाश   , दीन-दुःखी के कष्ट निवरते   देव-देवियों के आस   | |  माँ गंगा का मिलता रहें    आशीष     ऐसा हो निशि-दिन का प्रकाश   ,   जिस जन के मन में रहता श्वास   उसके पूरन    हो जाते सारे विश्वास   | |  निष्काम निष्पाप भावों    से   जिस जन के मन में रहता श्वास   , अविनाशी  योगी की साधना तीर्थ   सदा से करती रही विकास   | |  जिसके रज-कण में हरक्षण होता मन्दिर -मन्दिर बटते हैं मिठास ,   उन्मुक्त जीव रहें अविकारी विश्वासी   बाबा विश्वनाथ का आभास   | |  माँ गंगा

International Joke Day अन्तरराष्ट्रीय चुटकला दिवस

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 जब अपनी पैठ कहीं  न बन सकी । पुरखो के खड़े राहो के बैनर उठा  लायें । अब तो सड़कों की गर्मी भी बहुत है । पुरानी इबारत के गंध ही मिलती काफी है । चूहे , तिलचट्टे, झींगुर की महक भाते आये । लिखी कहीं ,गुमसाईन भी भली हो जाये । बयारों से ,जीवन दलदली हो चला है । पैठ बनाना भी ,अब एक कला है । क्या करता ,जमाने में शेखी भी है । दायें से बायें ,गर्दन फिराना भी कला है।  कहें तो हाँ में हाँ वाले ,हक्कारे भी उठा लाये । चुटकुले कहाँ रहे कुछ फुचकुल्ले बना लाये।  मुक्ता ,कविता की इज्जत देख ग़म  खा रहे है ।  ऑसू ,मेले का कैरेक्टर इज्जत उसकी बचा रहे है।  आखिर चुटकुला दिवस पर फुचकुल्ला सुना रहे है।।                  ------- अन्तरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस का शोकगीत है ।