नागरी हिन्दी के संवाहक : महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी, भारतीय नागरी, हिन्दी भाषा के शिखर पुरुष है, जिनसे, हिन्दी भाषा की गति का प्रवाह संस्कारित होता है । उन्होंने हिन्दी लेखनी की धुंधली रेखा में नवतूलिका से, जीवन रंग प्रदान करने का सत्प्रयास किया, जिस समय हिन्दी का आन्दोलन प्रगति पर था और हिन्दी गद्य की लड़ाई के साथ हिन्दी पद्य भी राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर आगे बढ़-चढ़कर अपना योगदान कर रहे थे, उस समय समाज में कोई अन्यथा भाव न हो जाए ।साहित्यिक दृष्टि से भाषा को राष्ट्रधर्म प्रधान मानकर रचनाधर्मिता की जा रही थी, उसी समय काशी में एक से एक सुनाम धन्य विद्वत् जनों का जन्म भी हो रहा था । बाबू श्याम सुन्दर दास ने लिखा है...
हिन्दी साहित्य की सन्त परम्परा का उद्घोष लिखित रुप में शिखर, मुखर और मानकीकरण के साथ आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जी ने ब्राह्म मुहूर्त की गंगा स्नान और तप साधना से आत्मसाध करके जनमानस के बीच पहुंचाने का काम किया , उसी गाँव के दूसरे छोर पर बैद्यनाथ द्विवेदी यानि हजारी प्रसाद जी भी निवास करते थे । किन्तु चतुर्वेदी जी का जन्म 25 जुलाई 1894 को जवही गाँव में पं०राम छबीले चतुर्वेदी के घर हुआ था और आचार्य हजारीप्रसाद जी 19 अगस्त 1907 को पैदा हुए थे । कबीर आदि सन्तों की परम्परा को चतुर्वेदी जी ने अपने स्तर से उत्तर भारत की संत परम्परा में मशहूर कर दिया, यही नहीं मीराबाई की पदावली को लिखने के लिए उनके घर चले गए और उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए महाराज गायकवाड़ पांच हजार रुपए भी दिये ताकि यह ग्रन्थ प्रकाशित हो सके प्रकाशक ने मूल ग्रन्थ में इस बात का स्पष्ट विवरण दिया है । ऐसे मनीषी को भला कोई मान सकता है कि एक पेशे से वकालत करने वाला संत साहित्य जगत का प्रकाशक होगा। पं०राम छबीले चतुर्वेदी और माता सूरजा देवी की संतान परशुराम जी की प्रारम्भिक शिक्षा व्यवस्था को देखकर उनके मामा ...
बुन्देलखण्ड के साहित्य तीर्थ चिरगाँव में जिस मनीषी ने जन्म लिया, उसी की भेरी से वणिक समाज साहित्य में सफल हो सका यह हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी रचनाधर्मिता में लिखा “बजती क्या मैथिलीशरण के काव्य कीर्ति की भेरी, मिलते अगर न उनको प्रेरक गुरु मुंशी अजमेरी। “ खीमल,जैसलमेर राजस्थान निवासी, डिंगल कवि एवं गायक श्री भीखा जी और उनके पूर्वज ठेठ मारवाड़ में जैसलमेर के रहने वाले थे । श्री भीखा जी को जैसलमेर से उस समय के रईस राव पालीवाल को आग्रहपूर्वक चिरगाँव बुला लिया गया था । जीवन सन्तति के सुपुत्र की कामना से भीखाजी अजमेर शरीफ जाकर प्रार्थना करने गये हुए थे । भीखा जी जैसलमेर से अजमेर आ रहे थे, अजमेर पहुँचते-पहुँचते उनके ज्येष्ठ पुत्र ईश्वरदत्त का देहांत हो गया । मार्ग में उपजे शोक को भीखा जी तब तक नहीं भुला सके जब तक चिरगाँव जाने पर प्रेमबिहारी का जन्म नहीं हो गया, अजमेरी जी के पिता भीखा जी कनकने देशी घी व्यापारी के यहाँ मुंशी का काम करने लगे थे वही से पारंपरिक मुंशी पदवी चल पड़ी वैसे देश में साहित्य के तीन मुंशी हुए कन्हैयालाल माणिकलाल,...
टिप्पणियाँ