भैंसा -गाड़ी ********** युग-युगों का धन ,भक्ति शक्ति की नाड़ी । च क्र-सुदर्शन एक ही पल है मिल जानी , जो कल था दीख रहा ,जीवन धड़कन गाड़ी । अदृश्य मान हो रही बुग्गी, घट-घाट सुहाती , नगर डगर की नरक से पार लगाती भैसा -गाड़ी । काल चाल की बात का जीवन दाब घटाती , चौकोर नाप लिए तनका, न तिरछी न आड़ी, राजमार्ग पर चलती अपनी भैसा गाड़ी । मदमस्त चक्रमणित पगुराती अपनी गाड़ी , चूं चरर का राग सुनाती ,कटरी जंगल झाड़ी। ढ़ोते जाती मल-मलिनता पत्तल -हाड़ी , सबका-सब बटोर ले-चलती भैंसा गाड़ी । जब-तक चलती रही बुग्गी बन यम की गाड़ी , जन-मन के भाग्य रहे हँसी खुशी सुरक्षित , नरक जाते जीव आयु पूर्ति या स्वयं बीमारी। या वे जाते जिनमें चलती आरी और कुल्हाड़ी । भैसों को जिनने अपनी खेती में कर ली, प्रभु ने उनकी सुधी ली भर दी उनकी झोली , युग बदला छूटे भैंसे ,यम के बने असवार , यमलोक पहुँचने लगें जीव और सवार, जीव-जगत है माया ,यहीं छूट जाएगी काया , ना रह जाएगा पैसा, सबको ले जाएगा भैंसा , चेले ढूंढते मलिनता को ढोते मन वाली गाड़ी , अब मानव भूल ...
बुन्देलखण्ड के साहित्य तीर्थ चिरगाँव में जिस मनीषी ने जन्म लिया, उसी की भेरी से वणिक समाज साहित्य में सफल हो सका यह हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी रचनाधर्मिता में लिखा “बजती क्या मैथिलीशरण के काव्य कीर्ति की भेरी, मिलते अगर न उनको प्रेरक गुरु मुंशी अजमेरी। “ खीमल,जैसलमेर राजस्थान निवासी, डिंगल कवि एवं गायक श्री भीखा जी और उनके पूर्वज ठेठ मारवाड़ में जैसलमेर के रहने वाले थे । श्री भीखा जी को जैसलमेर से उस समय के रईस राव पालीवाल को आग्रहपूर्वक चिरगाँव बुला लिया गया था । जीवन सन्तति के सुपुत्र की कामना से भीखाजी अजमेर शरीफ जाकर प्रार्थना करने गये हुए थे । भीखा जी जैसलमेर से अजमेर आ रहे थे, अजमेर पहुँचते-पहुँचते उनके ज्येष्ठ पुत्र ईश्वरदत्त का देहांत हो गया । मार्ग में उपजे शोक को भीखा जी तब तक नहीं भुला सके जब तक चिरगाँव जाने पर प्रेमबिहारी का जन्म नहीं हो गया, अजमेरी जी के पिता भीखा जी कनकने देशी घी व्यापारी के यहाँ मुंशी का काम करने लगे थे वही से पारंपरिक मुंशी पदवी चल पड़ी वैसे देश में साहित्य के तीन मुंशी हुए कन्हैयालाल माणिकलाल,...
नागरी हिन्दी के संवाहक : महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी, भारतीय नागरी, हिन्दी भाषा के शिखर पुरुष है, जिनसे, हिन्दी भाषा की गति का प्रवाह संस्कारित होता है । उन्होंने हिन्दी लेखनी की धुंधली रेखा में नवतूलिका से, जीवन रंग प्रदान करने का सत्प्रयास किया, जिस समय हिन्दी का आन्दोलन प्रगति पर था और हिन्दी गद्य की लड़ाई के साथ हिन्दी पद्य भी राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर आगे बढ़-चढ़कर अपना योगदान कर रहे थे, उस समय समाज में कोई अन्यथा भाव न हो जाए ।साहित्यिक दृष्टि से भाषा को राष्ट्रधर्म प्रधान मानकर रचनाधर्मिता की जा रही थी, उसी समय काशी में एक से एक सुनाम धन्य विद्वत् जनों का जन्म भी हो रहा था । बाबू श्याम सुन्दर दास ने लिखा है...
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