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लंका

लंका युद्ध, युग युगों से चल रहा है | काल में , सब कुछ ढल रहा है | देव के साथ , दनुज भी पल रहा है | सीता का बयान , चल रहा है | कृषक के पीछे , सब चल रहा है | किसान का गरीबी से , जनम - मरण का नाता है । सीता यक्ष प्रश्न है , लंका , सुरसा का मुंह ? पुरुषोत्तम की सीता, या लंकारि की लंका, ब्रह्मचारी दौड़े, धैर्यवान दौड़े , मर्यादा दौड़ी , रावण लगा रहा है । सीता के उपक्रम में , रात दिन थका हारा । रावण की लंका , घर- घर की लंका , सीता कृषिकर्म की रेखा , सस्य उपजते देखा । लोभ -प्रीती का , कार्य व्यापार , मन की नहीं उदर की । कल्पना लंका बन गयी , पूरी सीता हडपने की , योजना सभी बना रहे थे । सभी पेट का , कार्य व्यापार चला रहे थे । सीता जहां की थी । सीता वहां समा ही गयी । अयोध्या में भी, चरण पादुका की आड़ में, राज कर रहे जो , सो न जनता के, न हमारे , अपशब्दों में भी लंका एक शब्द । जिसका डंका इसी अब्द । कुपोषित - वीभत्स , नहीं सुशोभित , जब - जब, जर-जोरू-जमीन, जोड़ने की बात, सीता की याद , लंका के साथ, रावण का नात, नश्वर लोक, किसका शोक, लंका आज भी, सीता आज भी, मौलिकता खोज रही , आर्यावर्त, पूर्वी -बंगाल, क