लंका
लंका
युद्ध,
युग युगों से चल रहा है |
काल में ,
सब कुछ ढल रहा है |
देव के साथ ,
दनुज भी पल रहा है |
सीता का बयान ,
चल रहा है |
कृषक के पीछे ,
सब चल रहा है |
किसान का गरीबी से ,
जनम - मरण का नाता है ।
सीता यक्ष प्रश्न है ,
लंका ,
सुरसा का मुंह ?
पुरुषोत्तम की सीता,
या लंकारि की लंका,
ब्रह्मचारी दौड़े,
धैर्यवान दौड़े ,
मर्यादा दौड़ी ,
रावण लगा रहा है ।
सीता के उपक्रम में ,
रात दिन थका हारा ।
रावण की लंका ,
घर- घर की लंका ,
सीता कृषिकर्म की रेखा ,
सस्य उपजते देखा ।
लोभ -प्रीती का ,
कार्य व्यापार ,
मन की नहीं उदर की ।
कल्पना लंका बन गयी ,
पूरी सीता हडपने की ,
योजना सभी बना रहे थे ।
सभी पेट का ,
कार्य व्यापार चला रहे थे ।
सीता जहां की थी ।
सीता वहां समा ही गयी ।
अयोध्या में भी,
चरण पादुका की आड़ में,
राज कर रहे जो ,
सो न जनता के, न हमारे ,
अपशब्दों में भी लंका एक शब्द ।
जिसका डंका इसी अब्द ।
कुपोषित - वीभत्स ,
नहीं सुशोभित ,
जब - जब,
जर-जोरू-जमीन,
जोड़ने की बात,
सीता की याद ,
लंका के साथ,
रावण का नात,
नश्वर लोक,
किसका शोक,
लंका आज भी,
सीता आज भी,
मौलिकता खोज रही ,
आर्यावर्त, पूर्वी -बंगाल,
कहाँ है ।
भाई भतीजावाद,
टूटते रिश्ते नाते ,
अतीत की याद,
किले- महल खँडहर सताते ।
लंका से पहले की कहानी सुनाते ,
याद हो कुछ तो सुना देना ,
अच्छा कुछ गुनगुना देना ।
कलि -काल में,
चल रहे कार्य व्यापार पर ,
कदाचार के नाम ,
विराम लगा देना ।।
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