केंचुल
सभ्य होने के लिए, सांप ने घने बियाबान में। केंचुल छोड़ दिया, विश्वास न जोड़ सका। इन्सान क्या छोड़े, क्या जतन जोड़े , पाठ पूजा, पेट पूजा , जतन दूजा, घर से घट तक संवार । हाड़, हाय, धौंकनी तन की धधक। आत्म के पयान का, भय छोड़ न सका। आसमान गिद्ध, घनियारा निशीथ, प्रतिबिंब से सच निहारता, प्रतिपल अपनों से अपने ही हारता। आस नहीं विश्वास नहीं, सभ्य होने के लिए, बियाबान हमने काट दिए । केंचुल हम छोड़ भी दें, मन मसोस मुँह मोड़ भी लें, आस की श्वास भर भी न जी सका। प्रतिछाया हमेशा घूरती घेरती रही, अपने ही काल पर काल को न जोड़ सका।। सांप ने घने बियाबान में, केंचुल छोड़ दिया। आत्म के पयान का , भय छोड़ न सका। अपने ही काल पर काल को न जोड़ सका। 🗼🗼🗼🗼🗼🗼