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पानी Water

 पानी ****** पानी तो पानी है नैनों से  भावों को पढ़ कर  छलक गया । ऑखों का पानी बिन रुके सरक , होठों तक ढलक गया । पता नहीं क्यों संग मेरे, मन का खारापन झलक गया । या तो ऑखों से ऑसू रोक   लूं, ऐसा क्या हो गया । धडकन की बेचैनी से,छलनी मन को  क्या हो गया । बहनें देते हैं सब कुछ, सुबक सुबक रहने का हो गया । पर बिन चोट किये घायल, तन जैसा  मन मेरा हो गया । अतीत की बातें हैं एकाकी  में ऑसू  जैसे टपक गया । क्या कहूँ निगाहों का जीवन जैसे बियाबान वन हो गया ।                                   *****