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लोरिक मन्जरी

                           लोरिक मन्जरी                                                   ************   मीरजापुर जनपद के विभाजन के बाद कैमूर घाटी में सोनभद्र नाम से प्रसिध्द क्षेत्र का विस्तार मघ्यप्रदेश और बिहार प्रदेश की सीमाओं तक रहा हैं जिसमे जंगल , पठार , ही प्रमुख हैं , यहाँ बाघ , भालू , चीते आसानी से आज भी घूमते मिल जाते हैं , यह वन्य-प्राणियों का खुला अभयारण्य क्षेत्र है , यहाँ अतीत काल में छोटे-छोटे राजा राज्य किया करते थे , यहाँ का मार्ग दुर्गम होता था , आज भी है , क्योंकि समूचा क्षेत्र विन्ध्य पर्वत माला क्षेत्र से आच्छादित है , सोन क्षेत्र में विजयगढ़ का राज्य , रामगढ़ का राज्य  , कोटा का राज्य और अगोरी राजा का राज्य था  |  राजाओं के अधीन जंगल के निवासी प्रजा के रूप में रहा करते थे  |                   कहते हैं कि राजा का प्रमुख कर्तव्य जनता का पालन-पोषण है और जब राजा कर्तव्य पथ से हट जाता है , तो राज्य में अराजकता आ जाती हैं  |  खैरहटिया के समीप अगोरी किले का राजा मोलागत अपने राज्य में आनन्दपूर्वक रह रहा था , उसकी जुए के खेल की आदत उसके पद की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल थी

पढ़ाई

 नदी में तैरता हुआ तैराक हाथ-पैर मारते हुए अपने कार्य को कठिन बताता है, और अपने पास वाले को यह कहते हुए आगे बढ़ जाता है कि संसार का यह सबसे कठिन काम है,इग्लिश चैनल पार करना अब उसका आख़िरी मुकाम है,बाबा भारती का घोड़ा धोखे से झटकने वाला डाकू खड्ग सिंह यह चालबाजी चलने में सफल रहा था कि अपाहिज की भूमिका में उसने बाबा का घोड़ा हथिया लिया था | उस समय उसे लगा था कि उसका यह दांव कारगर निकला किन्तु बाबा का जो दाँव समाज पर उपयुक्त रहा आज भी उस विश्वासघात का मरहम नहीं बन सका है,आदमी एक समय में कई चालें चल सकता है,फिराके बना सकता है,जुगत लगा सकता है,काम करते हुए बतिया सकता है,दुनियाँ के सारे एशों आराम कर सकता है,किन्तु चाणक्य महाराज के अनुसार  विद्यार्थिन : कुतो  सुखं , की बात अलग थलग रह जाती है, यदि आप विद्यार्थीं है तो निश्चित जानिये शिक्षा का कोई आख़िरी मुकाम नहीं होता है,यह कोई इग्लिश चैनल पार करना जैसा कार्य नहीं होता है,जीवन के अनेक क्षेत्र है , अनेक विषय है ,किन्तु जीवन ही छोटा होता है,पढ़ाई में मनन है,चिंतन है,इसके साथ आप तैराकी नहीं कर सकते है,चालबाजी नहीं कर सकते है,कलाबाजी नहीं दिखा सक

वृक्ष

वृक्षों की शान्ति । तप की भ्रान्ति। नहीं बन रही है । चेतावनी मनुज को है ।। अनायास तोड़कर पहाड़ अपनी मौज को नहीं भविष्य के लिए मौत द्वार खोल रहे हो । नदियों का निर्बाध रुप बांध कर सही नही है । भयावह यातना पंचेश्वर क्या सरयू अलकनंदा है । निशिदिन बहता पर्वत जल सूख रहे होने को बंजर उड़ेंगे रेत पहाड़ों में सैलाब होगी मैदानों में ईको का बैनर छोड़ो वृक्षों को जड़ से जोड़ो । पर्यावरण शेष रहे । हरित देश का वेश रहे ।।