कुमाऊँ की वादियों में गूंजने वाला लोकगीत
बेडू पाको बारह मासा नरण काफल पाको चैत मेरी छैला .. ♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧ यह कुमाऊँ की वादियों में गूंजने वाला लोक गीत बारह महीने पकने वाले अंजीर (तीमल भी बेड़ू जैसा होता है लेकिन दोनों साथ नहीं खाना चाहिए ) को याद कर के काफल जो चैत (चैत्र महीने में)फलती है अपनी नरणी(देवी)से कहता है पुरुष का प्रकृति से प्रेम मानवीय रुप रोचक है इसके रचनाकार श्री ब्रजेन्द्र लाल शाह है , आखिर उत्तराखण्ड का श्रृंगार पक्ष इतना सशक्त है कि मेरे जैसा परदेसी हर पल वही भटकता है । ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ यह कहा जाय कि मेरा अल्मोड़ा आकाशवाणी केन्द्र का प्रवास निरर्थक रहा तो ऐसा नहीं था , बहुत कुछ हमने समीप जाकर इस जड़ी-बूटी प्रधान जनपद को अपने अभिन्न सहयोगी श्रीमती मधु सनवाल और श्री जगदीश सिंह खाती जी से समझ सका आकाशवाणी और स्थानीय लोगों से जनसंपर्क भी बना सका । रंग बिरंगे पर्वत को देखकर जिज्ञासावश प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहे । इसी क्रम में जब महतगाँव और कोसी हवालबाग की ओर गये तो कटारमल का सूर्य मंदिर भी देखा वही मेलू या मेहल जंगली सेब , को घने जंगलों के साथ पाया , इसी के साथ लाल स...