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बैद्यनाथ या हजारीप्रसाद

 बैद्यनाथ दुबे से हजारी प्रसाद बनने की यात्रा  ☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆ -कैलाश कल्पित की बातचीत साहित्य के साथी से (08 दिसम्बर 1955 विभागाध्यक्ष हिन्दी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रुप में पदस्थ प्रोफेसर द्विवेदी जी से भेंट ) ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ बैद्यनाथ जी भेंट की बात उनकी जुबानी सुनने का सुख सबसे आनन्द देने वाला है इसमें कहीं व्योमकेश शास्त्री और कैलाश कल्पित जी नहीं होंगे। हांलाकि पूरी भेंटवार्ता कल्पित जी की आठ दिसम्बर 1955 को उनके चार बार के प्रयास के बाद सफल हुई सहमति पहले ही मिल चुकी थी लेकिन उनका बनारस रहना कम हो पाता था। जब भेंट कल्पित जी से हुई तो भेंटोत्तर जानकारी आपके सम्मुख है :- मेरा मूल निवास-स्थान बलिया जिले के आरद दुबे का छपरा है। आरद दुबे मेरे (बाबा के बाबा) वृद्धत - प्रपितामह का नाम है। वे ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे । यह गाँव उन्हें उनकी योग्यता पर उस समय के राज्य द्वारा प्रदान किया गया था और उन्हीं के नाम से गाँव का नाम आरद दुबे का छपरा पड़ा । उसके बाद हमारे परिवार में पढ़ने- लिखने से अधिक रुचि रख