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नये विहाग में होली

  नये विहाग में होली ------------------ जीवन ऋतु के नये विहाग ने  , ली अगड़ाई और हो गयी होली  | किलकारी चहुँ ओर निहारे ,  गाँव गिराव जनमन की बोली  | शीत बयार की खाट छोड़  , रंग रसिया  ले रंग की ढोली  , अर् …. र्..र्.. का स्वांग रचाती   मदमाती आ गयी होली  | प्रकृति पुजारी वृक्षों ने  , पीत पात छोड़ किसलय ओढ़ी  | सरसों की अज़ब कहानी  , खेत खलिहानों को पियराती , रंग सुहाने बंजर बीहड़ के दिन , बहुरा टेसू से कुसुमाती लाली  | काग नीड़ छोड़ कोकिल कर रही ठिठोली  , सब जग एक रंग रंगे हैं  , गुन में नेह गेह की टोली  | बूढ़ों को नौजवान कर देती  , फागुन में प्रेम प्रीत की बोली  | आई ऐसी अपनी रीत प्रीत भरी  , स्नेहिल होली  | दनुज देव भाव से मिलते , करते प्रेम ठिठोली  | अर् …. र्..र्.. का स्वांग रचाती  || मदमाती आ गयी होली   -----0------