नये विहाग में होली

 

नये विहाग में होली
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जीवन ऋतु के नये विहाग ने ,ली अगड़ाई और हो गयी होली |
किलकारी चहुँ ओर निहारे
गाँव गिराव जनमन की बोली |
शीत बयार की खाट छोड़ ,
रंग रसिया  ले रंग की ढोली ,
अर्….र्..र्.. का स्वांग रचाती 
मदमाती आ गयी होली |
प्रकृति पुजारी वृक्षों ने ,
पीत पात छोड़ किसलय ओढ़ी |
सरसों की अज़ब कहानी ,
खेत खलिहानों को पियराती,
रंग सुहाने बंजर बीहड़ के दिन,
बहुरा टेसू से कुसुमाती लाली |
काग नीड़ छोड़ कोकिल कर रही ठिठोली ,
सब जग एक रंग रंगे हैं ,
गुन में नेह गेह की टोली |
बूढ़ों को नौजवान कर देती ,
फागुन में प्रेम प्रीत की बोली |

आई ऐसी अपनी रीत प्रीत भरी ,
स्नेहिल होली |
दनुज देव भाव से मिलते,
करते प्रेम ठिठोली |
अर्….र्..र्.. का स्वांग रचाती ||
मदमाती आ गयी होली

 

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