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माँ

 माँ तेरे अक्षर चन्द्र बिन्दी रखते है । शशि शेखर शायद तुझमें ही बसते है।  ¤¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤¤

लहुराबीर

  लहुराबीर ******** बनारस की अपनी यादें स्मृतियों के कोने में किसी न किसी रुप में मन में हिचकोले लेती रहती है, बाढ़ के पानी में लहुराबीर चौराहे का चक्कर लगाना और गर्मी के मौसम में बसन्तबहार में घुसकर फ्री की लस्सी पीने की जुगाड़ बैठाना, स्टूडेंट लाइफ की कारिस्तानी, अब याद आती है और बाबू सुरेन्द्र प्रताप सिंह (डीआईजी कॉलोनी आरआई बंगले के पास पुलिस लाईन के समीप आवास)शायद उन्हें नियाग्रा में इडली, दोसा खिलाने से लेकर लस्सी पिलाने में खूब आनन्द आता था, एक कारण था कि भाई अरविन्द सिंह(डीआईजी कॉलोनी निवासी)की बातों में फंस जाना दूसरे पक्के ठाकुर होने की मर्यादा और तीसरे हम सब साथ के सह यात्री विद्यार्थी भी थे। बसन्तबहार के पीछे की ओर भाई प्रजानाथ शर्मा कांग्रेस के युवा नेता उनके इशारे पर कुछ सामान क्रेडिट पर आते रहते थे और मित्र लोग-बाग वीर चन्द्रशेखर आजाद की तरह कम मूंछ होने पर भी उमेठने के लिए तत्पर रहते थे। डाॅ अब्बासी,अदील अहमद आदि भी थे लेकिन इन लोगों के क्लास अलग-अलग होने से वापसी में प्रायः छूट जाते थे, लेकिन संबंधों में परस्पर स्नेह समान था। प्रकाश टाकीज का एक किनारा राजनेता बनाने की

रामोदर साधु या नागरी प्रचारिणी के रा.सा.या आजमगढ़ के केदारनाथ पाण्डेय या सांकृत्य गोत्र :RAHUL SANKRITYAN

  रामोदर साधु या नागरी प्रचारिणी के रा.सा.या आजमगढ़ के केदारनाथ पाण्डेय या सांकृत्य गोत्र :RAHUL SANKRITYAN ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने नागरी प्रचारिणी का कार्यभार छोड़ दिया था लेकिन मन से अपने को अलग नहीं कर पाए थे । उन्हीं दिनों लेख प्रकाशित हुआ लेखक रा.सा.था । द्विवेदी जी के लिए पता करना उनकी जिज्ञासा और कौतूहल दोनों विषय बन गये , पता चला कि गोवर्धन पाण्डेय या पाण्डे का बेटा रामोदर साधु ही रा.सा.है। इस बालक का जन्म वैशाख कृष्ण अष्टमी रविवार 1950 विक्रमी अर्थात् नौ अप्रैल 1893ई० को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद स्थित दूलहपुर स्टेशन से छह मील उत्तर दिशा में पंदहा गाँव कनैला के निवास करने वाले संस्कारी किसान के यहाँ हुआ है । इस साधु की माँ का नाम कुलवंती था। बालक की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा में रानी की सराय पढ़ने जाना का था , बालक का नाम केदारनाथ पाण्डेय रखा गया,किन्तु मन के धनी एक आध महीने बडौरा गांव समीप में पढ़ाई किए, फिर रानी की सराय पाठशाला में भर्ती हुए। यह जगह जौनपुर-बनारस मार्ग पर था। उस समय वर्णमाला जमीन की मिट्टी पर लिखकर सीखना होता था। बाद