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तम

तम जीवन और मरण , प्रस्फुटन लरजता आवर्तन , निहित तम में परिवर्तन , प्रकृति विकास अंतरतम । कलिमा-ललिमा नित-नूतन , प्रिय उल्लास प्रियतम , तम जीवन और मरण , निहित तम में परिवर्तन।। मुठ्ठी में ले तम उधार, उज्जर विस्मृत करता भ्रष्टाचार , मधुमय देश मधुरतम । प्रकारान्तर रश्मियाँ उकेरती , अन्तस्थल तोड़ नीरवता गहनतम , तम जीवन और मरण , निहित तम में परिवर्तन ।। तम विशेष अवशेष , आगत स्वागत का प्रवेश, अंध-कूप में उजास का वेश , खद्योत द्योतित तम अंतर्मन , उजले पर उजला प्रतिबिम्बन , तम आश्रित अवलम्बन । तम जीवन और मरण , निहित तम में परिवर्तन ।। वर्ण तमिस्र किशन यमुना जल से, राधा उजली न जली बन सुन्दरतम , प्रांगण प्रभु करिया काग -पिक टेर , रामायण और मधुर गान का फेर । नगर-डगर घर-घर तम सबका आधार , अन्धकार बिन उजले को धिक्कार । तम अन्दर लघुत्तम बाहर महत्तम , तम जीवन और मरण , निहित तम में परिवर्तन।। क्यों न करे तम का आराधन , जब तम की आड़ छिपा लेते धन। अपराध अंधेरी दुनियाँ का है मन । तम की कीमत तौल रहा शातिर मन । तमतमाते यौवन का करता आकर्षण , तम जीवन और मरण , निहित तम में परिवर्तन ।। तम की जय विजय सब कर लेते ,

काग

  रहते जरद्गव बाबा के गाँव ।   एक आँख है दो पाँव   , तिमिरपर्यन्त   जल्पना काँव -काँव   , जीवन यथार्थ की कल्पना नाव। आदि व्यंजन बदनाम नयन   , खेचर काग चपल घूमता गगन   , सियार हिरन धोखा वृक्ष की छाँव । कौवा पंचतंत्र चतुरता की ठांव । सृष्टि काल से सफलता का यही दांव । सुधर जाने का सहज मार्ग चेष्टा काग । श्रद्धा मुक्ति भाव से तर जाते लोग   , पितर काग के भाग ।। मीठी बोली कर अपनी   , तज औरों को करते निहाल । काग खरी -खरी कहने वाला   , कभी नहीं रहा माया जाल । चाहे विष वमन करता सर्प   , चाहे कोकिल की हो चाल , कृष्ण राम के आंगन से सुलभ   , मामा की करते पुकार सभी बाल   , कहां हो कहां हो खोजते   , मुंडेरे चाहत का मनुहार   , नश्वर जगत बिसात में , चिरन्तन चलता है संसार   , काग कर रहे जरद् गव की पीढी   से   , अस्तित्व बचाने का है सहकार ।।   -------0------ 41- काग