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प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में

 प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में,  *********************** प्रभु चाहे रहो हिमगिरी या  सघन वन में , मैं रखता प्रतिपल  अपने मन में । निराकार साकार परब्रह्म   चिरन्तन में,  बसो नित ही  मेरे अन्तस्तल में । तुम्हीं अनमोल रतन इस जीवन में ,  पालक तारक मेरे  सुख दुःख के ।  जैसे भौरें पलते कुसुमित  वन में,  वैसे ही नित  बस जाते मेरे मन में । प्रभु आप ही सासों में संकल्पों में,  व्यवहार भरे जीवन के सुर तारों में । आप ही दिन में,  आप ही रातों में,  आप ही शक्ति में,  आप ही भक्ति में । दुखियारों के सारे  दुःख हरते हो , प्रतिपल रख लो अपनी ऑखों में । चराचर ब्रह्म जगत  विधाता आपही हो,  डूब रहे  के संकट तो  पल में  हरते हो । प्रभु चाहे रहो सागर में या  सघन वन में,  मैं सेवक रखता आपको प्रतिपल अपने मन में ।।                *******