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Do this is to be in Benaras

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 भरम न करा भईया, ~~~~~~~~~ हमरा के जाये के हव , ~~~~~~~~~ तोहरा के जाये के हव , ~~~~~~~~~~~ एक दिन धरती के कोरा , ~~~~~~~~~~~ भरम न करा भईया, ~~~~~~~~~~ ई दुनियाँ ना तोहरा हव ना हमरा ।। ~~~~~~~~~~~~~~~ यह उस साधु कबीर की पंक्ति है जिसे मैं सात बरस की आयु से अपनी माँ की अंगुली पकड़कर ग॔गा मईया के जल से नहान करने के लिए पिसनहरिया से दशाश्वमेध तक ब्राह्म मूहुर्त में लगभग चार बजे सुबह भोरहरी में हाफ नेकर और बुशर्ट पहनकर वह भी मेरी माँ ने ही मुझे ठीक ढंग से पहनायें है, नंगे पैर पूरे उत्साह के साथ नियमित अभ्यास की तरह आज भी निकल पड़ा । रास्ते भर की चाय भट्टी हमेशा की तरह कुछ सुलगाई जा रही थी कुछ पर चाय बन रही थी । हुकुलगंज में कहीं-कहीं मुर्गे की बांग सुनाई पड़ रही थी चौकाघाट पर शान्त माहौल,जगतगंज के बाद लहुराबीर पर चन्द्रशेखर आजाद की रौबदार मूछें मुझे उत्साह दे रही थी । एक ओर बसन्त बहार दूसरी ओर नियाग्रा के दोसे की याद आ गई । चेतगंज की सोंधी चाय की बात अलग है ,लेकिन आज बेनियाबाग के मोड़ पर बाबा कबीर दास के भजन की लाइन जब नहीं सुनाई पड़ी । तो मेरे कंठ बरबस फूट पड़े-यह जग ना तोरा है ना मोरा औ