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पर्यावरण

  पर्यावरण   मनुज   का , दनुज   खेल  , परिवर्तन   पर्यावरण   । प्रकृति , दोहन   की   रेल , बदलता , भूमंडल   का   आवरण   ।। छिन   रहे   छाँव   । ठौर   जीव   जन्तु   जुगाली   के , करते ,  नित   जिस   ठाँव   ।। छल - छदम , मन   करता   रहा   वरण  , बुद्धि   मन   प्रतिकूलता   में भागीदार   रहा   हर   क्षण  , नैसर्गिकता   त्याग  , आधुनिकता   में   धूमिल , हो   रहा   अपना   ही   आवरण   । अनायास   मौत ,  तबाही ,  विनाश। अर्थ - पिशाचों   की   अंधी   भावनाओं   में , असंतुलित   वातावरण  , सब   कुछ   परिणति  , प्रकृति   शोषण , उपशम   भाव   करे   वरण , लोभ   संवरण  , जल   बिन   बंजर   नयन   के   प्रांगण  , जल   रही   नदियाँ   क्षेत्र   सैकत   कण  , संस्कार   पूजन   का   कहाँ   बनाये   तोरण   ।। तृण   नहीं   कैसे   हो   जाये   उ  - ऋण  , मर्त्य - लोक   में धरती   का   करे   श्रृंगार   । प्रकृति   का   संतुलन , मानवता   का , आवरण  , पर्यावरण   ।। ------------------0------------