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उड़गन की बात निराली

  उड़गन की बात निराली , ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार   ******************************************* उड़गन की बात निराली , ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार ।   जीव जगत और प्रकृति पुरुष की  ,  महिमा अपरम्पार ।। खनिज  ,  नदियाँ और पहाड़  , धरती का आगार । सूरज चन्दा अहर्निश निगरानी  ,  देते ऊर्जा बारम्बार । । उड़गन की बात निराली , ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार । कलियों में मदन क्यारी रसिकन को माली की लगे है मार । हरियाली वृक्षों का श्रृंगार  , सुमनों में भौंरो का गुंजार । । गगन में पक्षी कलरव करते  ,  मेघ धरा पर करत फुहार । जूही  - चम्पा क्यारी - क्यारी झूमें  ,  लहराये राजमार्ग कचनार । । उड़गन की बात निराली , ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार । ग्रीष्म ताप आतप धूसरित धूर  ,  नदियाँ भई कछार । पुरवाई की मस्तानी में , लबालब बहै शीतल मंद बयार ।। धान - किसान कहे गेंहू में हमहूँ  , अरहर जीवन करै संवार । शीत की भीत खानपान से जब्बर , जीव रखे साधु विचार । । उड़गन की बात निराली , ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार । सावन  - भादों जीवन यौवन संग साथ रहे सदा बहार । सौमनस्य व्रत ले मनुज , सीख दे मानवता का उध्दार । । सब