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चुड़ैल

चुड़ैल **** प्रकृति मौन। कौन , धरातल , चुड़ैल, बन आया । छाया के, पारावार मध्य, उलझा जीवन-आधार, आत्म परमात्म में न आया । प्रकृति मौन । पंचवटी की, अटवी में , सप्तर्षि, हो रहे बेहाल । झुरमुट- झंझावात, बसेरों में विप्लव, दु:स्वप्न सदृश, सहज मनुज , अचल अडिग सवाल । गण्डा -धागा टोना-टोटका, सुरक्षा कवच बनते जंजाल । तृषित मानवता बुन लेती , विराग जाल । प्रकृति अंश । घनेरे वट -वृक्षों से, पा रहे दंश । कर लेती स्वभाव क्रूर, बन जाती चुड़ैल । प्रकृति मौन , यायावरी , नाच नचाती , छप्पर -नदी और शैल । नियति संत्रास क्रीडा , मन का मिटा न हो मैल । असंतुष्ट -असंतृप्त मानवता , आकार ले होती चुड़ैल । घनियारे अन्हियारे , बबूल -बड़ नहीं ढूढ़ पाए हल । भटकती आत्मा की परिणति , समय का खेल । वीभत्स घिनौने रूप का मेल । बना देती चुड़ैल ।। प्रकृति मौन, चीत्कार फुत्कार, भाषा हो जाती सत्कार , जोग -विराग माया । जतन से, वशीभूत हो आया, आत्म-परमात्म में, नश्वरता विलीन हो रही काया। तपसी के वश में बस, हाहाकार सीत्कार स्वीकार, प्रकृति मौन । छोड़ क्रूर -कल्मष अभिशाप , अन्हियार परमात्म, प्रकाश बन आया, योगी ही विरही , क्षुधित को स

घुटना

  जीवन का पल - पल जब लगने लगे अपना । थाम लेता मोह से घट   ,  घुटन और घुटना । घुट - घुट जीवन चलता   , जैसे चलता सपना । भ्रमित मन कहता   , कपोल कल्पित कल्पना । घुटरन रेनु तन मण्डित   , वन्दित शोभित वदना । आधार बन आयाम दिखे है   , जीवन का घुटना । व्यायाम - प्राणायाम गुह्य तथ्य है मनना जपना । घट का संकट भवसागर के मझधार में पड़ना । केशों से होता परिवर्तन ,  सजना और संवरना । असमय घुटेकेश हो जाता कातर मनुज मना । अटल चक्र आकर्षक पद   , मोह और गहना । माया जगत सब झूठे   ,  जब रूठ गये घुटना । घुटता यौवन घटता जीवन क़ायम रहे टंखना। घट का क्षरण   , मरण ,  विन्यास केश करना । जय जन   , मन संग ,  सब मिल कर रहना । । -------0------- 42- घुटना