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कहानी - मॉर्निग वाक्

कान्हापुर का नामोनिशां मिटे वर्षों बीत गये,ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन,   जैसी बड़ी मिल की चिमनी का धुँआ बुझ चुका  था ,इक्का-दुक्का मिलें ही छिट-फुट रुप में पनकी में चल रही थी,  जहाँ-तहाँ सड़कों पर ट्रेन की पटरियां बिछी पड़ी है , जो याद दिला रही है कि कानपुर कभी मैनचेस्टर ऑफ इंडिया रहा होगा । एक ओर गुरुदेव  पैलेस का मार्ग ,विश्वविद्यालय ,दलहन संस्थान, आई आई टी कानपुर का शैक्षणिक माहौल का क्षेत्र है , यहीं पर नया बसने वाला है ,कानपुर का कल्याणपुर आवासीय योजना विहार ,जिसमें दो मुख्य मार्ग बरबस लोगों के आकर्षण के केन्द्र है । आशीर्वाद एन्क्लेव और उदयन एन्क्लेव, किन्तु यहां तो लोग पहले से ही जमीन पर अपना मकान बनाये हुए  रह रहे हैं ,यहाँ  के कुछ लोगों को लगता है कि अब हम लोग ग्रामीण से शहरी हो जायगे ,इनमें सिऊ तो बुजुर्ग हो चुके है ,उनके नाती - पोते का परिवार है ,दूसरा परिवार रजिन्दर का है ,बढ़ती उमर  के कारण , जहाँ  सिऊ के मुँह में एक-एक करके दांत घटते जा रहे हैं , वहीं रजिन्दर की  खोपड़ी के सभी बाल झक सफेद हो चुके है ,मुहल्ले के बच्चे उन्हें बाबा- बाबा कहते हैं,उन्हीं  के घर के पिछवारे पियारे भ