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पुल बह गया

  इस वर्ष डाक विभाग ने मेरी राखी जिसे रक्षा कहते है समय पर नहीं पहुंचाया तो ड़ा सुशील कुमार राय की याद आई एक मुक्तक लिख रहा हूँ --- पुल बह गया || शोक , संताप का मन रह गया | प्रकृति दंश विध्वंश , रिश्तों को दो   तट कर गया |  पुल बह गया || आषाढ़ , सावन स्मृतियों के , भंग नदियों का तट कर गया |  पुल बह गया ||   प्रेषित पार बहिन की राखी , विषम परीक्षा भाई की कर गया | पुल बह गया || मनुज विमर्श नहीं करता प्रति वर्ष , जीवन समाधान और संघर्ष में रह गया ।     पुल बह गया || बहते क्यों पुल हैं ? कटती   क्यों नदियाँ ? पुल बह गया || पर्व की चाहना क्यों धरी रह जाती है ? आओ बचा लें अपना पुल |   पुल बह गया || नदियों के तट सघन वृक्ष लगा लें , धरती का श्रृंगार करा दें ,   पुल बचा लें   ||   विनाश भी   बचा लें ,  विकास   और करा लें ,  आखिर   पुल बह गया || बहिन के घर भाई का पर्व जगा लें   स्नेह , दुलार , मर्यादा , सेतु पर्व बचा लें |  पुल बह गया || ---0---

सांवरा तू वृन्दावन की कुंजगली में हो !

सांवरा तू वृन्दावन की कुंजगली में हो । ************************* सांवरा तू  तो वृन्दावन की कुंजगली   हो । मैं भी तो कुसुमित बागों की एक कली हूं । तू इन गलियों में अलि बन आ जाते हो  । मैं उन राहों की  गुंजारों से  झूमा करती हूं । मैं तो  यमुना में  जल की बहती लहर  हूं । तू पुलिन पर आहट बन कर आते हो । सांवरा तू  तो वृन्दावन की कुंजगली  हो । तू पनघट की बजती सबरस बांसुरी हो । मैं झुरमुट से बहती रुनझुन  तान हूं ।  सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली  हो । सावरे तू तो रंग संग रास रचाते जाते हो । मैं तेरी  राह मन ही मन  खींचती  आती हूं ।। सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली  हो । आस तुम्हारी विश्वास तुझी में लगाये बैठी हूं । तुम्हीं मझधार की  नौका पार कराते हो।।  सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली  हो । फिर काँहे अंधियारी रात बात बनाते हो । हिया को सपने में  भी तुम तो  डराते हो ।। सांवरा तू  तो वृन्दावन की कुंजगली   हो । मैं भी तो कुसुमित बागों की एक कली हूं ।           रचना -डाॅक्टर करुणा शंकर दुबे