सांवरा तू वृन्दावन की कुंजगली में हो !
सांवरा तू वृन्दावन की कुंजगली में हो ।
*************************
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
मैं भी तो कुसुमित बागों की एक कली हूं ।
तू इन गलियों में अलि बन आ जाते हो ।
मैं उन राहों की गुंजारों से झूमा करती हूं ।
मैं तो यमुना में जल की बहती लहर हूं ।
तू पुलिन पर आहट बन कर आते हो ।
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
तू पनघट की बजती सबरस बांसुरी हो ।
मैं झुरमुट से बहती रुनझुन तान हूं ।
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
सावरे तू तो रंग संग रास रचाते जाते हो ।
मैं तेरी राह मन ही मन खींचती आती हूं ।।
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
आस तुम्हारी विश्वास तुझी में लगाये बैठी हूं ।
तुम्हीं मझधार की नौका पार कराते हो।।
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
फिर काँहे अंधियारी रात बात बनाते हो ।
हिया को सपने में भी तुम तो डराते हो ।।
सांवरा तू तो वृन्दावन की कुंजगली हो ।
मैं भी तो कुसुमित बागों की एक कली हूं ।
रचना -डाॅक्टर करुणा शंकर दुबे
टिप्पणियाँ