भैंसा गाड़ी
भैंसा -गाड़ी
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युग-युगों का धन ,भक्ति शक्ति की नाड़ी ।
चक्र-सुदर्शन एक ही पल है मिल जानी ,
जो कल था दीख रहा ,जीवन धड़कन गाड़ी ।
अदृश्य मान हो रही बुग्गी, घट-घाट सुहाती ,
नगर डगर की नरक से पार लगाती भैसा -गाड़ी ।
काल चाल की बात का जीवन दाब घटाती ,
चौकोर नाप लिए तनका, न तिरछी न आड़ी,
राजमार्ग पर चलती अपनी भैसा गाड़ी ।
मदमस्त चक्रमणित पगुराती अपनी गाड़ी ,
चूं चरर का राग सुनाती ,कटरी जंगल झाड़ी।
ढ़ोते जाती मल-मलिनता पत्तल -हाड़ी ,
सबका-सब बटोर ले-चलती भैंसा गाड़ी ।
जब-तक चलती रही बुग्गी बन यम की गाड़ी ,
जन-मन के भाग्य रहे हँसी खुशी सुरक्षित ,
नरक जाते जीव आयु पूर्ति या स्वयं बीमारी।
या वे जाते जिनमें चलती आरी और कुल्हाड़ी ।
भैसों को जिनने अपनी खेती में कर ली,
प्रभु ने उनकी सुधी ली भर दी उनकी झोली ,
युग बदला छूटे भैंसे ,यम के बने असवार ,
यमलोक पहुँचने लगें जीव और सवार,
जीव-जगत है माया ,यहीं छूट जाएगी काया ,
ना रह जाएगा पैसा, सबको ले जाएगा भैंसा ,
चेले ढूंढते मलिनता को ढोते मन वाली गाड़ी ,
अब मानव भूल गया ,अपनी भैंसा गाड़ी ।
युग-युगों का धन ,भक्ति शक्ति की नाड़ी ।
चक्र-सुदर्शन एक ही पल है मिल जानी ,
जो कल था दीख रहा ,जीवन धड़कन गाड़ी ।
अदृश्य मान हो रही बुग्गी, घट-घाट सुहाती ,
नगर डगर की नरक से पार लगाती भैसा -गाड़ी ।
काल चाल की बात का जीवन दाब घटाती ,
अब मानव भूल गया अपनी भैंसा गाड़ी ।
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☆यह मुक्तक अपने आकाशवाणी रामपुर पोस्टिंग के दौरान देखी गई भैंसागाड़ी, वैसे 1995 में आकाशवाणी कानपुर में भी देखी थी 1968 के समय बनारस में भी थी।
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