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बापू और हिन्दी

 बापू और हिन्दी  ~~~~~~~~~ हे चिर स्मरणीय; वन्दनीय बापू  ! स्वीकार करों जयन्ती का अभिवादन,  आप शान्त,  सौम्य मौन हो उदार।  जन मन की हिन्दी भाषा सबके द्वार,  उत्कर्ष पुंज बन प्रकाश के पारावार,  हे चिर स्मरणीय , वन्दनीय बापू! स्वच्छता उद्यम ही युग का आधार,  कथा-कहानी का नागरी में हो रहा सर्जन,  ब्रज अवधी में राम कृष्ण का भजन,  ऐसे बापू आपकी हिन्दी का है वंदन।  स्वीकार करों , जयन्ती का अभिवादन।  हे चिर स्मरणीय,  वन्दनीय बापू! गीतों में अब तो सजते पर्वों के दिन,  हर द्वार से लौटा माथ लगाये चंदन।  बापू ऐसी आपकी हिन्दी का वंदन,  स्वीकार करों,  जयन्ती का अभिवादन।। हे चिर स्मरणीय,  वन्दनीय बापू,  स्वीकार करों,   जयन्ती का अभिवादन।।                  ¤¤¤¤¤