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बागेश्वर

  मैं अगर बिछड़ भी जाऊँ कभी मेरा ग़म न करना । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मेरी याद करके कभी आँख नम न करना । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ तू जो मुड़ के देख लेगा मेरा साया साथ होगा । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 卐卐卐卐卐卐卐卐 ॐ 卐卐卐卐卐卐卐 जब ज़िन्दगी को बहुत-बहुत नजदीक से देखता हूँ , सोचता हूँ , पाने के लिए कुछ नहीं है , खोने के बहुत कुछ है , लेकिन जो अपने हो तो उनमें कुछ नाम ऐसे है जिनसे कभी नहीं मिला अनाम किन्तु अनन्य परिचित आत्मीय भाई श्री सुमन्त मिश्र , विषम परिस्थित में भी सभी से जुड़कर कुशलक्षेम बाबा विश्वनाथ दरबार का पुण्य प्रसाद सब तक बजरंग बली संकटमोचन बाबा का आशीर्वाद सभी को देने की भावना , ताकि जाने-अनजाने पर नहीं कोई संकट किसी भी समय पर आन नहीं पड़े ऐसे को वंदन नमन है । उनके महान कार्य और योगदान साथ ही लेखनी , जो हमें प्रेरित करती है , उनकी नित्य कृति जो है देखकर , पढ़कर पाओ वही सुखद है । अन्तर्मन में रखने का कोई लाभ नहीं सो आज बागेश्वर के नीलेश्वर और भीलेश्वर चोटी के बीच पहुँच चुका हूँ । अपने उत्तराखण्ड सेवाकाल के दूसरे दौर के प्रभार के समय अपने केन्द्राध्यक्ष कार्यभार के अन्त

कुमाऊँ की वादियों में गूंजने वाला लोकगीत

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  बेडू पाको बारह मासा नरण काफल पाको चैत मेरी छैला .. ♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧♧ यह कुमाऊँ की वादियों में गूंजने वाला लोक गीत बारह महीने पकने वाले अंजीर (तीमल भी बेड़ू जैसा होता है लेकिन दोनों साथ नहीं खाना चाहिए ) को याद कर के काफल जो चैत (चैत्र महीने में)फलती है अपनी नरणी(देवी)से कहता है पुरुष का प्रकृति से प्रेम मानवीय रुप रोचक है इसके रचनाकार श्री ब्रजेन्द्र लाल शाह है , आखिर उत्तराखण्ड का श्रृंगार पक्ष इतना सशक्त है कि मेरे जैसा परदेसी हर पल वही भटकता है । ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ यह कहा जाय कि मेरा अल्मोड़ा आकाशवाणी केन्द्र का प्रवास निरर्थक रहा तो ऐसा नहीं था , बहुत कुछ हमने समीप जाकर इस जड़ी-बूटी प्रधान जनपद को अपने अभिन्न सहयोगी श्रीमती मधु सनवाल और श्री जगदीश सिंह खाती जी से समझ सका आकाशवाणी और स्थानीय लोगों से जनसंपर्क भी बना सका । रंग बिरंगे पर्वत को देखकर जिज्ञासावश प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहे । इसी क्रम में जब महतगाँव और कोसी हवालबाग की ओर गये तो कटारमल का सूर्य मंदिर भी देखा वही मेलू या मेहल जंगली सेब , को घने जंगलों के साथ पाया , इसी के साथ लाल सेब ज

सच और झूठ की दूरी

  वो देखो मुझसे रुठकर मेरी जान जा रही है ? <<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<< पुत्री सौदामणि दूबे के पिता महेश दास जलालुद्दीन अकबर के मन्त्री के रुप में बीरबल नाम से मशहूर थे । एक बार जलालुद्दीन अकबर ने सवाल किया कि सच और झूठ में क्या अन्तर है , तो प्रत्युत्तर बीरबल ने कहा मेरे अनुसार चार अंगुल का अन्तर है । अचानक पूरी सभा में सन्नाटा छा गया । जलसाज हमेशा उन्हें दरबार से बाहर का रास्ता दिखाने या जान से मरवाने की कोशिश में उलझन भरा प्रश्न किया करते रहते थे , जलालुद्दीन अकबर उसमें खुश भी रहते थे । आगे मुल्ला दो प्याजा ने कहा जवाब समझ में नहीं आया , तो बीरबल ने कहा समझना क्या है ? पूरी बात को देखकर समझ जायेंगे । काना-फूंसी करने वाले बेहतर जानते है । जलालुद्दीन अकबर ने कहा साफ - साफ कहो भाई ? बीरबल ने कहा - आँख और कान दोनों के बीच की दूरी चार अंगुलियों भर की ही तो है । कान झूठ सुन सकता है औ