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अमरत्व

  अमरत्व प्राण भरे दो आस , थमते ही जीवन श्वास । टूटा धागा नेह विश्वास।। किसी के भाग पहुंचा , किसी को मिली हंसुली । लूट मची कुछ ऐसी , कविता के तार ताने-बाने   , पंक्ति -पंक्ति से बट गयी । पहली पंक्ति दूसरी से कट गयी ।। अर्थ अनर्थ में छट गयी । धरी रह गई धरा पर देह , पल भर पहले की छूट गई नेह । अर्थ पिशाचों की दुनियां , कभी न सोचती अपना चाल , कल अपना भी होगा यही हाल । टूट पडे़गी आने वाली पीढ़ी , निधन सुनते निर्धन कर देगी । देह छोड़ दनुज का खेल , खेल रहे जो हम । हमसे खेलेंगे भावी जन-मन। स्वार्थ परार्थ त्याग परमार्थ भाव धरो। आत्म परमात्म का ध्यान करो । आस पर विश्वास धरो । नश्वर को नया स्वर दो । जीवन में अमरत्व भर दो ।। ------0-----