अमरत्व

 

अमरत्व

प्राण भरे दो आस,
थमते ही जीवन श्वास ।
टूटा धागा नेह विश्वास।।
किसी के भाग पहुंचा,
किसी को मिली हंसुली ।
लूट मची कुछ ऐसी,
कविता के तार ताने-बाने ,
पंक्ति -पंक्ति से बट गयी ।
पहली पंक्ति दूसरी से कट गयी ।।
अर्थ अनर्थ में छट गयी ।
धरी रह गई धरा पर देह,
पल भर पहले की छूट गई नेह ।
अर्थ पिशाचों की दुनियां,
कभी न सोचती अपना चाल,
कल अपना भी होगा यही हाल ।
टूट पडे़गी आने वाली पीढ़ी,
निधन सुनते निर्धन कर देगी ।
देह छोड़ दनुज का खेल,
खेल रहे जो हम ।
हमसे खेलेंगे भावी जन-मन।
स्वार्थ परार्थ त्याग परमार्थ भाव धरो।
आत्म परमात्म का ध्यान करो ।
आस पर विश्वास धरो ।
नश्वर को नया स्वर दो ।
जीवन में अमरत्व भर दो ।।
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