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राधाष्टमी RADHASHTMI

  राधाष्टमी  ******* भारतीय संस्कृति सदनीरा है । पुण्य दायिका है । मानवीय सरोकारों को सहेजने का आधार रही है । मानवीय जीवन के वैराग्य भाव से अनुराग भाव की ओर ले चलने की संस्कृति ही  भारतीय है। मनुष्य जीवन ही संसार में कर्म आधारित है , अपने कर्म के अनुसार ही इच्छित प्राप्ति  संभव है। इसी क्रम में  मनुष्य को आस्था के स्वरुप देव- देवी सुदृढ़ता प्रदान करते हैं । भारतवर्ष प्रति-दिन पर्व के रुप में जीवनचर्या को  चलायमान  रखता है।  आने वाला दिन,  समय, नये और पुराने को  आधार बनाकर संबल का कार्य कराते हैं।    परम्परागत मान्य  रुप से राधा जी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को प्राकट्य दिवस के रुप में मनाया जाता है । राधा कृष्णप्रिया के रुप में जयदेव के गीतगोविन्द में दिखाई  पड़ती हैं। एक जनश्रुति के अनुसार राधा वृषभानु की पुत्री और कीर्ति की बेटी वृन्दावन वासिनी है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण  की पूर्व जन्म की गोपी की आराधना में  रत रहने के कारण ही राधा का प्राकट्य सम्भव हुआ। यह उनके जन्म के पन्द्रह दिन के बाद की तिथि रही है। एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के द्वारा वरदान प्राप्त कर र

वामन जयन्ती

  वामन जयन्ती  ^^^^^^^^^^^^ भारतीय संस्कृति में  देव राज इन्द्र सदैव अपने पद के प्रति शंकालु रहा है। समुद्र मंथन में देव और असुर के मध्य अमृत को लेकर उपजे विवाद का प्रसंग ही दो धाराओं में बांटने का काम करता है, उसके बाद आधिपत्य और अधिकार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। देवों ने असुरों को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। शुक्राचार्य ने अपनी संजीवनी विद्या से बलि के साथ अन्य असुरों को जीवनदान दिया फ़िर क्या आसुरी सेना ने अमरावती पर चढ़ाई कर दी देवराज इन्द्र समझ गये कि राजा बलि ब्रह्मतेज़ से पोषित हो चुका है।  देवगुरु के आदेश से देवता स्वर्ग छोड़कर भाग गए । अमर धाम अब असुर राजधानी बन गया । शुक्राचार्य ने राजा बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कराना आरम्भ किया । सौ अश्वमेध करके राजा बलि नियम सम्मत इन्द्र बन जायेंगे फ़िर उन्हें कौन हटा सकता है।        विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र ने जब अश्वमेध यज्ञ करना आरम्भ किया । उसी समय इन्द्र देव की मां अदिति घबरा चुकी थी । उन्हें विश्वास हो गया था कि असुर  राजा बलि अपना सौ यज्ञ पूरा करके इन्द्र की पदवीं प्राप्त कर लेगा। राजा बलि विष्णु भक्त वि