उजाला
जीवन दरख्त मानिन्द , अंधियारे से उजाले , बीज से वृक्ष , हरित से पीत भी है , सूखने पर भी काबिल है , बस वही खूबसूरत है , और हम अक्लियत के सहारे , उसी बीज को अंधेरे से बोते , उजाले के होते है , ठूंठ तो कीमती है , अक्लियत की भी मति है , यह भटकते का भूगोल है , अटकते की गणित है । हम वृक्ष मानिन्द ही बढ़े है । अंधियारे से उजाले की ओर चले है । अंधेरा जहां पलता है वहीं से चले है । सूरज को भी छुपना पड़ता है । ऐसे ही खुशहाली का पल मिलता है । जीवन दरख्त मानिन्द पलता है ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°