उजाला
जीवन दरख्त मानिन्द ,
अंधियारे से उजाले ,
बीज से वृक्ष ,
हरित से पीत भी है,
सूखने पर भी काबिल है,
बस वही खूबसूरत है,
और हम अक्लियत के सहारे ,
उसी बीज को अंधेरे से बोते,
उजाले के होते है,
ठूंठ तो कीमती है,
अक्लियत की भी मति है,
यह भटकते का भूगोल है,
अटकते की गणित है ।
हम वृक्ष मानिन्द ही बढ़े है ।
अंधियारे से उजाले की ओर चले है ।
अंधेरा जहां पलता है वहीं से चले है ।
सूरज को भी छुपना पड़ता है ।
ऐसे ही खुशहाली का पल मिलता है ।
जीवन दरख्त मानिन्द पलता है ।।
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