संदेश

काग लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काग

  रहते जरद्गव बाबा के गाँव ।   एक आँख है दो पाँव   , तिमिरपर्यन्त   जल्पना काँव -काँव   , जीवन यथार्थ की कल्पना नाव। आदि व्यंजन बदनाम नयन   , खेचर काग चपल घूमता गगन   , सियार हिरन धोखा वृक्ष की छाँव । कौवा पंचतंत्र चतुरता की ठांव । सृष्टि काल से सफलता का यही दांव । सुधर जाने का सहज मार्ग चेष्टा काग । श्रद्धा मुक्ति भाव से तर जाते लोग   , पितर काग के भाग ।। मीठी बोली कर अपनी   , तज औरों को करते निहाल । काग खरी -खरी कहने वाला   , कभी नहीं रहा माया जाल । चाहे विष वमन करता सर्प   , चाहे कोकिल की हो चाल , कृष्ण राम के आंगन से सुलभ   , मामा की करते पुकार सभी बाल   , कहां हो कहां हो खोजते   , मुंडेरे चाहत का मनुहार   , नश्वर जगत बिसात में , चिरन्तन चलता है संसार   , काग कर रहे जरद् गव की पीढी   से   , अस्तित्व बचाने का है सहकार ।।   -------0------ 41- काग