उड़गन की बात निराली

 उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार 

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उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार । 
जीव जगत और प्रकृति पुरुष की , महिमा अपरम्पार ।।
खनिज , नदियाँ और पहाड़ ,धरती का आगार ।
सूरज चन्दा अहर्निश निगरानी , देते ऊर्जा बारम्बार । ।
उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार ।
कलियों में मदन क्यारी रसिकन को माली की लगे है मार ।
हरियाली वृक्षों का श्रृंगार ,सुमनों में भौंरो का गुंजार । ।
गगन में पक्षी कलरव करते , मेघ धरा पर करत फुहार ।
जूही -चम्पा क्यारी-क्यारी झूमें , लहराये राजमार्ग कचनार । ।
उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार ।
ग्रीष्म ताप आतप धूसरित धूर , नदियाँ भई कछार ।
पुरवाई की मस्तानी में,लबालब बहै शीतल मंद बयार ।।
धान-किसान कहे गेंहू में हमहूँ ,अरहर जीवन करै संवार ।
शीत की भीत खानपान से जब्बर,जीव रखे साधु विचार । ।
उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार ।
सावन -भादों जीवन यौवन संग साथ रहे सदा बहार ।
सौमनस्य व्रत ले मनुज,सीख दे मानवता का उध्दार । ।
सब जन हो अपना सा जब मिले भाव नमन उपकार ।
जीवन खुशहाल रहेउत्साह उमंगों में रहे सदा सहकार । ।
उड़गन की बात निराली,ढूंढ रहे निशीथ में सारा संसार । 

 

 

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