पर्यावरण
पर्यावरण
मनुज का,
दनुज खेल ,
परिवर्तन पर्यावरण ।
प्रकृति,दोहन की रेल,
बदलता,भूमंडल का आवरण ।।
छिन रहे छाँव ।
ठौर जीव जन्तु जुगाली के,
करते, नित जिस ठाँव ।।
छल-छदम,
मन करता रहा वरण ,
बुद्धि मन प्रतिकूलता में
भागीदार रहा हर क्षण ,
नैसर्गिकता त्याग ,
आधुनिकता में धूमिल,
हो रहा अपना ही आवरण ।
अनायास मौत, तबाही, विनाश।
अर्थ-पिशाचों की अंधी भावनाओं में,
असंतुलित वातावरण ,
सब कुछ परिणति ,
प्रकृति शोषण,
उपशम भाव करे वरण,
लोभ संवरण ,
जल बिन बंजर नयन के प्रांगण ,
जल रही नदियाँ क्षेत्र सैकत कण ,
संस्कार पूजन का कहाँ बनाये तोरण ।।
तृण नहीं कैसे हो जाये उ -ऋण ,
मर्त्य-लोक में
धरती का करे श्रृंगार ।
प्रकृति का संतुलन,
मानवता का,
आवरण ,
पर्यावरण ।।
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