प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में
प्रभु रहना मेरे जीवन प्रांगण में,
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प्रभु चाहे रहो हिमगिरी या सघन वन में ,
मैं रखता प्रतिपल अपने मन में ।
निराकार साकार परब्रह्म चिरन्तन में,
बसो नित ही मेरे अन्तस्तल में ।
तुम्हीं अनमोल रतन इस जीवन में ,
पालक तारक मेरे सुख दुःख के ।
जैसे भौरें पलते कुसुमित वन में,
वैसे ही नित बस जाते मेरे मन में ।
प्रभु आप ही सासों में संकल्पों में,
व्यवहार भरे जीवन के सुर तारों में ।
आप ही दिन में, आप ही रातों में,
आप ही शक्ति में, आप ही भक्ति में ।
दुखियारों के सारे दुःख हरते हो ,
प्रतिपल रख लो अपनी ऑखों में ।
चराचर ब्रह्म जगत विधाता आपही हो,
डूब रहे के संकट तो पल में हरते हो ।
प्रभु चाहे रहो सागर में या सघन वन में,
मैं सेवक रखता आपको प्रतिपल अपने मन में ।।
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