लहुराबीर

 लहुराबीर

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बनारस की अपनी यादें स्मृतियों के कोने में किसी न किसी रुप में मन में हिचकोले लेती रहती है, बाढ़ के पानी में लहुराबीर चौराहे का चक्कर लगाना और गर्मी के मौसम में बसन्तबहार में घुसकर फ्री की लस्सी पीने की जुगाड़ बैठाना, स्टूडेंट लाइफ की कारिस्तानी, अब याद आती है और बाबू सुरेन्द्र प्रताप सिंह (डीआईजी कॉलोनी आरआई बंगले के पास पुलिस लाईन के समीप आवास)शायद उन्हें नियाग्रा में इडली, दोसा खिलाने से लेकर लस्सी पिलाने में खूब आनन्द आता था, एक कारण था कि भाई अरविन्द सिंह(डीआईजी कॉलोनी निवासी)की बातों में फंस जाना दूसरे पक्के ठाकुर होने की मर्यादा और तीसरे हम सब साथ के सह यात्री विद्यार्थी भी थे। बसन्तबहार के पीछे की ओर भाई प्रजानाथ शर्मा कांग्रेस के युवा नेता उनके इशारे पर कुछ सामान क्रेडिट पर आते रहते थे और मित्र लोग-बाग वीर चन्द्रशेखर आजाद की तरह कम मूंछ होने पर भी उमेठने के लिए तत्पर रहते थे। डाॅ अब्बासी,अदील अहमद आदि भी थे लेकिन इन लोगों के क्लास अलग-अलग होने से वापसी में प्रायः छूट जाते थे, लेकिन संबंधों में परस्पर स्नेह समान था। प्रकाश टाकीज का एक किनारा राजनेता बनाने की अड्डा था । बाकायदा संस्कारित किया जाता था । लोग-बाग बड़े नेतागण से यही मिलते भी थे। योजनानुसार मुकेश मिश्र पत्रकारिता के अच्छे स्टूडेंट थे । कहाँ बीएचयू और कहाँ बसन्तबहार बैठक यही ठीक थी। परस्पर प्रेम सुख दुख बांटने का भी कार्य होता कभी राहुल श्रीवास्तव,भाई अनिल श्रीवास्तव छात्र नेता के रुप में शिवपुर से बीएचयू तक सम्पर्क)सबको मधुबन में याद करते लेकिन खड़े - खड़े जो जीवन को निहारने का मूर्तिवत् सुख पाषाणकाय वीरवर चन्द्रशेखर आजाद को मिल सका उस समय के सह मित्र मण्डली को ही मिला । ठाकुर बसन्त सिंह(पाण्डेय कॉलोनी)हरफन के शौकीन जिस पर कृपा की वह नौकरी पा गया । अपनी चिन्ता कम करते थे। चिन्ता सभी की करते थे । पढ़ने लिखने में मेधावी रहे,कचहरी से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की यात्रा और युवाओं के प्रेरणादायक वीर पुरुष चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति को चलती बस से देखना लड़के और लड़कियों को समभाव रोमांच देता था । आज भी शायद दे रहा हो , लेकिन लोग-बाग मोबाईल देखने में व्यस्त होने के कारण महापुरुष को नहीं देखते होंगे। वेगो टेलर्स से लोग-बाग लहुराबीर पर कपड़े सिलवाना अपनी शान समझते थे , घनश्याम गिनौडिया(जगतगंज) की दुकान पर से कपड़े लेना यादों में था क्योंकि वह साथी बीएचयू का था।चेतगंज थाने के बगल में दुकान चलाना आसान काम नहीं था गिनौडिया जी भी एक बार बीएचयू में चुनाव लड़े।
बैंड़बाक्स में कपड़े धुलवाना तो लहुराबीर ही जाते थे। पढ़ने के लिए क्वींस काॅलेज जगतगंज कहने को स्थान था इस काॅलेज का एक गेट लहुराबीर की ओर तो दूसरा जगतगंज की ओर है । वाराणसी रेलवे-स्टेशन मलदहिया मार्ग से सीधे इसके विपरीत मैदागिन ज्ञानमण्डल नागरी प्रचारिणी सभा होते हुए और चेतगंज होते हुए बेनियाबाग गोदौलिया गिरजाघर इतना सूझबूझ का चौराहा कि खाओ पीओ मस्त रहो। पास में संस्कृत विश्वविद्यालय, पास में काशी विद्यापीठ भी है। बनारस चरैवेति का शहर है बहुत कुछ चलते फिरते नप जाता है । लहुराबीर जगतगंज के पास ही पामा साबुन, टूल्लू सिन्नी वालों(यह तो घनश्याम टेक्सटाइल के सामने पिशाचमोचन वाली रोड़ पर फैक्टरी थी लहुराबीर ही माने)की थी बंद हो गई बहुत अच्छी कंपनी थी। जगतगंज पोखरे के सामने थी।
अब सब बदल गया मायने मुट्ठी में समेटने के होने लगे पाप पानी से धोने को व्याकुल नदी समुद्र सब मटमैला कर चुके महामारी शुद्ध करने पर तुली हुई है कल कारखाने बंद है। त्राहि माम् को कौन सुने दिशा के मानक वीरवर चन्द्रशेखर आजाद,,सब कुछ देखकर मौन है । दारुण दुःख है । जन-मानस व्यथित लहुराबीर पर मोबाईल से फोनिया रही है - तू पहुंचा हम पीछे पीछे आवत हई ।
卐ॐनमःशिवायॐ卐

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