वृक्ष
वृक्षों की शान्ति ।
तप की भ्रान्ति।
नहीं बन रही है ।
चेतावनी मनुज को है ।।
अनायास तोड़कर पहाड़
अपनी मौज को नहीं
भविष्य के लिए मौत
द्वार खोल रहे हो ।
नदियों का निर्बाध रुप
बांध कर सही नही है ।
भयावह यातना पंचेश्वर
क्या सरयू अलकनंदा है ।
निशिदिन बहता पर्वत
जल सूख रहे होने को बंजर
उड़ेंगे रेत पहाड़ों में
सैलाब होगी मैदानों में
ईको का बैनर छोड़ो
वृक्षों को जड़ से जोड़ो ।
पर्यावरण शेष रहे ।
हरित देश का वेश रहे ।।
टिप्पणियाँ