पढ़ाई

 नदी में तैरता हुआ तैराक हाथ-पैर मारते हुए अपने कार्य को कठिन बताता है, और अपने पास वाले को यह कहते हुए आगे बढ़ जाता है कि संसार का यह सबसे कठिन काम है,इग्लिश चैनल पार करना अब उसका आख़िरी मुकाम है,बाबा भारती का घोड़ा धोखे से झटकने वाला डाकू खड्ग सिंह यह चालबाजी चलने में सफल रहा था कि अपाहिज की भूमिका में उसने बाबा का घोड़ा हथिया लिया था | उस समय उसे लगा था कि उसका यह दांव कारगर निकला किन्तु बाबा का जो दाँव समाज पर उपयुक्त रहा आज भी उस विश्वासघात का मरहम नहीं बन सका है,आदमी एक समय में कई चालें चल सकता है,फिराके बना सकता है,जुगत लगा सकता है,काम करते हुए बतिया सकता है,दुनियाँ के सारे एशों आराम कर सकता है,किन्तु चाणक्य महाराज के अनुसार  विद्यार्थिन : कुतो  सुखं , की बात अलग थलग रह जाती है, यदि आप विद्यार्थीं है तो निश्चित जानिये शिक्षा का कोई आख़िरी मुकाम नहीं होता है,यह कोई इग्लिश चैनल पार करना जैसा कार्य नहीं होता है,जीवन के अनेक क्षेत्र है , अनेक विषय है ,किन्तु जीवन ही छोटा होता है,पढ़ाई में मनन है,चिंतन है,इसके साथ आप तैराकी नहीं कर सकते है,चालबाजी नहीं कर सकते है,कलाबाजी नहीं दिखा सकते है,आपको तो मूल भावना के साथ पढाई ही करना पड़ेगा , इधर-उधर मन को नहीं भटकाना नहीं पड़ेगा,कितना भी दु:ख-सुख आवे |एकाग्रता के साथ मन को स्थिर कर बैठना पड़ेगा,श्वान के निद्रा की भावना को रखना होगा,गृह-त्यागी बनना पड़ेगा , बक-ध्यान को लगाना पड़ेगा ,रिश्तेदारी निभा रहे है-अथवा चाचा-मौसी में समय गवां दिया तो उम्र और समय सीमा से जुडी पढाई और नौकरी की पटरी से जीवन की गाड़ी उतर जायगी । अल्पाहारी होना पड़ेगा यह खायेगें- वह खायेगें इस सोच को बदलना होगा सादा जीवन ही उच्चता के शिखर पर पहुचाता है,देश के अनुरूप वेश को रखना पड़ेगा काम को करना पड़ेगा साथ में मृदु भाषी भी होना होगा ,परस्पर मधुरता और विनम्रता से स्वागत करना , कम शब्दों में बात करना ,जीवन का सिद्धांत होना चाहिए , वर्तमान परिवेश में पदाई के समय मोबाईल की घंटी और टेलीविजन के सीरियल की आवाज़ भी ध्यान बटाने अथवा भंग करने के अलावा और कोई काम नहीं करती है,पढ़ने के बगल वाले कमरे में बैठे हुए यदि जोर से बातें करे ,तो उनकी बातें -आवाज़े पढ़ने वाले की एकाग्रता को नष्ट ही करती है,पूर्ण एकाग्रता पुस्तकों से आखें चार करने गुरुजनों के गुरुत्व दाब एवं विषय के प्रति आकर्षण और ज्ञान के प्रति रूचि लाकर ही हो सकती है, पढाई  मन से आत्म सात की जा सकती है,पढ़ते समय खेला नहीं जा सकता,बतियाया नहीं जा सकता,अन्य  दिशा में चिन्तन भी नहीं किया जा सकता है पठन,पाठन  मनन  ही पढाई की मूल अवधारणा है--

                     पढ़ लें पढ़ लें -नूतन जीवन, गढ़ लें ।

                   चलता जाय समय का पहिया, पढ ले ।।

    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नागरी हिन्दी के संवाहक:महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी

आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और चलता पुस्तकालय

केंचुल