लोरिक मन्जरी

 

                         लोरिक मन्जरी

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 मीरजापुर जनपद के विभाजन के बाद कैमूर घाटी में सोनभद्र नाम से प्रसिध्द क्षेत्र का विस्तार मघ्यप्रदेश और बिहार प्रदेश की सीमाओं तक रहा हैं जिसमे जंगल,पठार,ही प्रमुख हैं,यहाँ बाघ,भालू,चीते आसानी से आज भी घूमते मिल जाते हैं,यह वन्य-प्राणियों का खुला अभयारण्य क्षेत्र है,यहाँ अतीत काल में छोटे-छोटे राजा राज्य किया करते थे,यहाँ का मार्ग दुर्गम होता था,आज भी है,क्योंकि समूचा क्षेत्र विन्ध्य पर्वत माला क्षेत्र से आच्छादित है,सोन क्षेत्र में विजयगढ़ का राज्य,रामगढ़ का राज्य ,कोटा का राज्य और अगोरी राजा का राज्य था | राजाओं के अधीन जंगल के निवासी प्रजा के रूप में रहा करते थे |

                 कहते हैं कि राजा का प्रमुख कर्तव्य जनता का पालन-पोषण है और जब राजा कर्तव्य पथ से हट जाता है,तो राज्य में अराजकता आ जाती हैं | खैरहटिया के समीप अगोरी किले का राजा मोलागत अपने राज्य में आनन्दपूर्वक रह रहा था,उसकी जुए के खेल की आदत उसके पद की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल थी , जबकि अगोरी का किला एक दुर्गम किला था , उस राज्य पर आक्रमण करना दुष्कर कार्य था,इसका एक कारण था,राज्य के एक ओर रेणु नदी थी ,तो दूसरी ओर विजुल नदी थी साथ में एक तीसरी नदी भी थी जिसे सोन कहते थे |

     एक प्रकार से अगोरी का किला तीन  ओर से सुरक्षित था ,यहीं  बोहा यानी कछार क्षेत्र में महरा नामक एक धनी गोपालक रहता था , अगोरी के राजा मोलागत से उसकी अच्छी पहचान थीसाथ ही महरा अपने जीवन के अधिकतम समय को मोलागत के साथ बिताता था ,खेल के चौपड़ की बिसात पर हार-जीत का सिलसिला चलता रहता है ,एक दिन  राजा मोलागत के साथ खेलते समय महरा जूए की सभी चालें हारता ही जा रहा थाहारते-हारते एक-एक करके अपनी जमीन जायदाद यहाँ तक की अपनी पत्नी को कोख भी हार गया ,इस हार से निराश महरा निराश  के लिए राजा मोलागत के राज दरबार में ये शर्त सुनाई गयी-तुम्हारी स्त्री से जो भी सन्तान पैदा होगी ,वह अगोरी राज दरबार की शोभा होगी | स्त्री और उसके कोख से उत्पन्न सन्तान को हार जाने का मतलब अपने अस्तित्व को हार जाना हैं ,इस बात से महरा मन ही मन दुखी रहने लगा एक के बाद एक संतानें हुई और जैसे ही सयानी होती थी  अगोरी के राज दरबार के लोग आकर उसकी सन्तान को लेकर चले जाते थे,वह बेबस कुछ नहीं कर पाता  था ,और सब की सब राजा मोलागत के दरबार की शोभा बनती चली गयी,अब तक महरा अपनी छह संतानों को मोलागत के दरबार में भेज चुका था गाँव समाज के लोग भी उसे जूए के खेल पर कोसते थे,महरा मन से व्यथित रहता था ,उसके धैर्य की सीमा टूटने लगी थी,उसने सोचा किसी नौजवान को अपनी होने वाली अगली सन्तान को सौप दूँगा ,परन्तु मोलागत के राज दरबार में नहीं भेजूँगा ,इसी बीच सातवीं सन्तान मन्जरी का जन्म हुआ , ईश्वर ने इसे अपरम्पार सुन्दरता दे रखी  थी ,अब तो महरा डर ही गया ,महरा ने अपने मन को मजबूत किया कि मन्जरी उससे दूर नहीं जायगी ,उसे छिपाकर रखने लगा कि कहीं उसपर किसी की दृष्टि न पड़ जाय ,समय के साथ बड़ी होती मन्जरी को इस बात का पता चल गया कि अगोरी का राजा मोलागत जो बहुत बूढा भी हो चुका हैं वह उसे अपनाना चाहता है |

        मन्जरी ने भी निश्चय किया कि वह उस बूढ़े के यहाँ नहीं जायगी और उसने एक दिन अपने पिता से यह बात खुलकर कह भी दिया – बापू आप शर्त हारे थे हम नहीं , हम उसके दरवाजे नहीं जायेगें वह मरने के करीब है उसके पास धन है तो क्या हुआ वह राजा है तो क्या हुआ , इधर मन्जरी की व्यथा और महरा का कष्ट जन-जन को मालूम हो चुका था,मोलागत का अत्याचार भी लोगों को असहय लगने लगा था,यह बात गाँव में कानों कान फैलने लगी थी ,अगोरी से पचास मिल दूर गउरा गाँव में भी कठियत को पता चली ये लोग भी  गोपालक थे,उसी का पुत्र लोरिक था ,मन्जरी के बारे में बहुत कुछ उसने भी सुन रखा था,,मन में उसकी कल्पना भी करता था,राजा मोलागत की करतूत को सुनकर उसके मन में आग सुलग उठी उसने निश्चय किया कि अब तो मन्जरी मेरी ही होकर रहेगी चाहे जो भी हो ,चाहे उसे इसके लिए अगोरी के राजा मोलागत से लड़ना भी पड़ेवीर लोरिक की वीरता की गाथा तो आस-पास के सभी ग्रामवासी जानते ही थे,

         गोपालक महरा को जैसे ही पता चलता है कि लोरिक उसका शुभ  हेतु चाहने वाला है वह प्रसन्न हो जाता है,,महरा चुपके से अगोरी से गउरा गाँव के कठियत के यहाँ पहुंचता है,और  आनन-फानन में अपनी बेटी का ब्याह लोरिक से तय कर देता है ,महरा लोरिक का तिलक करके विवाह का दिन तय करके ही अगोरी लौट आता है,इधर मोलागत के जासूसों ने मोलागत राजा को सूचना दी कि मन्जरी की शादी राजा आपसे  नहीं होगी लोरिक से होगी | मोलागत  बौखला जाता है , गउरा का राजा सहदेव लोरिक के विवाह की जानकारी पाते ही क्रोधित हो उठता है,क्योंकि उसकी निगाह  में उसकी अपनी बेटी भी लोरिक को ब्याहने के लिए थी सहदेव राजा अपना विरोध कठियत के पास भेजता है ,युध्द ठन जाता है,वीर लोरिक माँ दुर्गा का भक्त है ,माता का स्मरण करते हुए युध्द क्षेत्र में जाता है,जहाँ उसकी विजय होती है,पराक्रमी लोरिक अपनी प्रसिध्दी के अनुरूप सवा लाख बरातियों के साथ अगोरी की ओर चल देता है,राजा अगोरी के दूत मोलागत को सूचना देते हैं कि लोरिक आ रहा हैं ,प्रजा में हलचल मच जाती हैं ,लोरिक सूरज जैसा चमकता है,लोरिक के पास सवा लाख सैनिक है जितने मुँह उतनी बातें ,राजा मोलागत अगोरी राज्य के प्राकृतिक सुरक्षा का लाभ उठाकर नदी के किनारे रहने वाले मल्लाहों को बरातियों और लोरिक को नदी पार लाने से मना कर देता है वीर लोरिक बरातियों के साथ नदी के तट पर पहुँचता है,

       मल्लाहों के नेता को आमंत्रित करता है,इसी बीच एक साजिश से लोरिक को नदी की बीच धारा में डुबो देने की षड्यन्त्रकारी  सूचना मल्लाहों को दे दी जाती है |

          मल्लाह नेता , लोरिक और उसके पिता कठियत  तथा भाई संवरू को नदी पार नाव से जाने के लिए अनुमति दे देता है,तट पर खड़े नाव पर पिता कठियत ,पुत्र लोरिक और भाई संवरू नाव पर बैठते है,नाव चल पडती है योजना के अनुसार नदी के बीच में नाव डूबने लगती हैं और संवरू और कठियत भयभीत हो जाते है,लोरिक डूबती नाव छोडकर संवरू और पिता कठियत दोनों को अपनी भुजाओं में दबाकर नदी पार पहुँचाता है ,एक-एक करके सभी बराती अगोरी पहुँच जाते है इधर राजा मोलागत के क्रोध का कोई ठिकाना नहीं रहता , बेबस मोलागत शांत होकर दूतों की सूचनाओं पर मन मसोस  कर रह जाता है |

      शाम होते-होते बरात महरा के दरवाजे पर पहुँचती हैं,विधिपूर्वक लोरिक –मन्जरी का ब्याह होता है,रात को सभी बराती वहीं सो जाते है ,बेचैन जाग्रत युवा वीर लोरिक रात में ही ससुराल जाता हैं ,वहाँ उसका मन्जरी से मिलन  होता  है , मन्जरी लोरिक को अपने पिता पर अगोरी के राजा की विपत्ति को बतलाती है लोरिक मन में तय कर लेता है,कि भीषण युध्द करके ही यहाँ से जाना होगा |  

 

       मन्जरी उसे अगोरी के सिध्द देवी-देवताओं के विषय में जानकारी देती है,जानकारी मिलते ही लोरिक महादेव बंसरा और मनिया देव-देवियों से वरदान पाने देवालय जाता है ,सत्यनिष्ठा का पुजारी लोरिक उदात्त भावनाओं के साथ देवी –देवताओं से प्रत्यक्ष वार्ता करता है,उसके लगन-पराक्रम के कारण देवी देवता उसे आशीर्वाद देते है,वह कहता है- हे माँ मुझे शक्ति दो,मैं विजयी होऊ |

देवगण –एवमस्तु विजयी भव |

          राजा मोलागत मन्जरी को पकड़वाने के लिए अपने सैनिक महरा के घर भेजता है , महरा शांतिपूर्वक उन्हें वापस कर देता है,और सैनिकों से कहता है कि अपने राजा से कह दो कि वह मन्जरी का विचार छोड़ दे इसी में उसकी भलाई है ,मोलागत इस बात से गुस्से में आ जाता है,और अपने पालतू पहलवान ‘मरदमल’   को  लोरिक के लिए लगा देता है , भयंकर युध्द होता है,  मरदमल के पैर उखड़ जाते है,इसी के साथ मोलागत को अपनी हार मान  लेनी पडती है और महरा हमेशा के लिए स्वतन्त्र हो जाता है |

      महरा अब मन्जरी के बिदाई की सोचने लगता है,लोरिक उसे गउरा ले चलने को तैयार भी हो जाता है , मन्जरी घर से निकलने से पहले कहती है क्या हम दोनों ऐसे ही गउरा चले जायेगे ,लोरिक कहता है क्या चाहती हो - स्वामी मैं चाहती हूँ कि आपकी वीरता का प्रमाण अंचल वासियों के बीच हमेशा-हमेशा रहे |

    ठीक है,मन्जरी इस प्रस्तर को मैं एक ही वार में तीन टुकड़े कर देता हूँ जो आने वाले युगों में मारकुंडी की चोटी पर वीर लोरिक के पौरुषता की अमर गाथा कहता रहेगा |

                                                          आलेख –डा० करुणा शंकर दुबे

 

 

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