गिरगिट का रंग
आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया ।
ना जाने कैसा वक्त आ गया ।
श्वान सम्बोधन से उकताया हुआ ।
माया,मद,मोह, लोभ,और प्रीति में छा गया ।
आदमी तन मन से गिरगिट में समा गया ।
आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया ।
सर्प, बिच्छू के दंश से उपचारित हो सके हैं ।
भय की बात कौन करता है यहाँ ।
उभय तो रोम -रोम समा गया ।
आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया ।
इस उभयवादी से सत्य भी छला गया ।
दलबदल की राजनीति कल की बात थी ।
तन्त्र अब दिल बदलने तक तो आ गया ।
आदमी को गिरगिट का रंग कैसा भा गया ।।
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