बिजली की स्फूर्ति के महाराजा बिजली पासी

बिजली की स्फूर्ति के महाराजा बिजली पासी

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(यह आकाशवाणी एफएम वर्ष  2000 पर सजीव  स्वयं प्रसारण  के लिए श्रीमती रमाअरुण त्रिवेदी को किले से दी गई जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है)

महाराजा बिजली पासी लखनऊ के प्रसिध्द राजाओं में से एक थे ,उनकी स्मृति में आज भी धरोहर के रूप में पासी किला या बिजली पासी किला खण्डहर रूप में स्थित है,कहते है कि महाराजा बिजली पासी  की माता का नाम बिजना था, इसीलिए उन्होंने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी, जो कालांतर में बिजनौरगढ़ के नाम से संबोधित किया जाने लगा यह स्थान लखनऊ से कानपुर आजाद इन्जिनियरिग कालेज मार्ग पर है,बिजली पासी के कार्य में विस्तार हो जाने के कारण बिजनागढ में गढ़ी का समिति स्थान पर्याप्त न होने के कारण बिजली पासी ने अपने मातहत एक सरदार को बिजनागढ को सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर  नटवागढ़ की स्थापना की।यह किला काफी भव्य और सुरक्षित था। बिजली पासी की लोकप्रियता बढ़ने लगी और अब तक वह राजा की उपाधि धारण कर चुके थे। नटवागढ़ भी कार्य संचालन की दृष्टि  से पर्याप्त नहीं था, उसके उत्तर तीन किलोमीटर एक विशाल किले का निर्माण कराया जिसका नाम महाराजा बिजली पासी किला पड़ा, जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं, अब राजा बिजली पासी महाराजा बिजली पासी के नाम से विभूषित हो चुके थे। यह किला लखनऊ जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर सदर तहसील लखनऊ के अंतर्गत दक्षिण की ओर बंगला बाजार के आगे सड़क के दाहिनी ओर महाराजा बिजली पासी के साम्राज्य के  गवाह के रूप में विद्यमान है। महाराजा ने कुल 12 किले राज्य विस्तार के कारण बनवाये थे। वे हैं 1- नटवागढ़ 2- बिजनौरगढ़ 3- महाराजा बिजली पासी किला 4- माती 5- परवर पश्चिम 6- कल्ली पश्चिम इनके भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं, 7- पुराना किला यह स्थान लखनऊ सदर के रास्ते पर है,8- औरावां किला 9- दादूपुर किला 10- भटगांव किला 11- ऐनकिला 12- पिपरसंड  किला।  महाराजा बिजली पासी का केन्द्रीय किला सुरक्षित था। महाराजा बिजली पासी की प्रगति से कन्नौज का राजा जयचंद चिन्तित रहने लगा क्योंकि महाराजा बिजली पासी पराक्रमी और महत्वकांक्षी थे। बिजली पासी के सैन्य बल एवं वीर योद्धाओं का वर्णन सुनकर जयचंद भयभीत रहता था, लेकिन अपने साम्राज्य के विस्तार की   जयचंद की भी इच्छा रहती थी। जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन पासी के किले पर आक्रमण कर दिया, इस आक्रमण में घमासान युद्ध हुआ और जयचंद की सेनाओं को भागना पड़ा। इस अपमान जनक पराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था, किंतु बाद में जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली पासी के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। आल्हा ऊदल कन्नौज की सेनायें लेकर अवध आये और उनका पहला पड़ाव लक्ष्मण टीला था। इसके बाद पहाड़ नगर टिकरिया गये। बिजनौरगढ़ से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर सरवन टीलें पर उन्होंने डेरा डाला। यहां से उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा बिजली पासी किले से संबंधित सूचनाएं एकत्र की, जिस समय महाराजा बिजली पासी अपने पड़ोसी मित्र राजा काकोरगढ़ के किले में आवश्यक कार्य से गये हुए थे। उसी समय मौका पाकर आल्हा ऊदल ने अपना एक दूत इस संदेश के साथ भेजा कि राजा हमें अधिक धनराशि देकर हमारी अधीनता स्वीकार करें। यह सूचना तेजी से संदेश वाहक ने महाराजा बिजली पासी को काकोरगढ़ किले में दी उसी समय सातन पट्टी के राजा सातन पासी भी किसी विचार विमर्श के लिए काकोरगढ़ आये थे। संदेश पाकर महाराजा बिजली पासी घबराये नहीं , बल्कि धैर्य से उसका मुंह- तोड जवाब भिजवाया कि महाराजा बिजली पासी न तो किसी राज्य के अधीन रहकर राज्य करते हैं और न ही किसी को अपनी आय का एक भी हिस्सा  भी देने को तैयार थे , जब आल्हा ऊदल का दूत यह संदेश लेकर पहुंचा उसे सुनकर आल्हा ऊदल आग बबूला हो गये और अपनी सेनाएं गांजर में उतार दी यह स्थान वर्तमान चक गजरिया फ़ार्म है, यह खुला मैदान था। इस स्थान पर मुकाबला आमने सामने हुआ। यह युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक चला। इस युद्ध में सातन कोट के राजा सातन पासी ने भी पूरी भागीदारी की थी। युद्ध बड़ा भयानक था। इसमें अनेक वीर योद्धाओं का नरसंहार हुआ। इस घमासान युद्ध में पराक्रमी पासी राजा महाराजा बिजली पासी बहादुरी से लड़ते हुए  सन् 1194 ई. को वीरगति को प्राप्त हुए, यह समाचार जब पड़ोसी राज्य देवगढ़ के राजा देवमाती को मिला तो वह अपनी फौजों के साथ आल्हा ऊदल पर भूखे शेर की भांति झपट पड़ा। इस युद्ध की भयंकर गर्जन और ललकार सुनकर आल्हा ऊदल भयभीत होकर कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए  । आज इस किले में जो मूर्ति स्थापित है उसके तीन ओर पट्टिकाओं पर कुछ  लिखा गया है, जो इस प्रकार से है –दाहिनी ओर लिखा है महाराज पासी 12 वीं शती के उत्तरार्ध्द में अवध साम्राज्य के अति पराक्रमी राजा थे इनमें बिजली की स्फूर्ति होने के कारण इनका नाम  बिजली पासी था,ये बिजनागढ के राजा थे |पृष्ठ भाग पर लिखा है कि महाराज बिजली पासी के साम्राज्य के अधीन 12 किले थे,उनके नाम भी बतलाये गये है,जो आज भी है |

बायीं ओर बिजली पासी की शौर्य गाथा लिखी गयी है,जिसमें कहा गया है,कि सातन पासी के सहयोग से जयचन्द के विरुध्द बिजली पासी ने युध्द किया और प्राणों की आहुति दी |

            25 फरवरी 2002 को उत्तर प्रदेश पर्यटन ने किले के सौन्दर्यीकरण की शुरुआत की अब यह पर्यटन तीर्थ है,यह लाखौरी ईंटों से बना भग्नावशेष का तीर्थ है,इसे प्रातः 06 से 09 और सायं 15 बजे से 17 बजे के मध्य नि:शुल्क देखा जा सकता है |

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