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हिप्पी आन्दोलन या क्रैक रिज, या नासा प्वाइंट 8

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 क्रैक रिज़ ,नासा प्वाइंट 8 या हिप्पी आन्दोलन या फिर कसार देवी का मंदिर:वैश्विक तीर्थ ही है ! ****************************************** यह मेरे अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश या उत्तराखण्ड जानें का या पोस्टिंग का कोई नया अवसर नहीं है, लगभग ढाई वर्ष पहले जब यह पता चला कि शारदीय नवरात्रि के समय ऑफिस में कुछ लोग अवकाश मांग रहें हैं कि उन्हें कसार देवी मंदिर जाना है, उत्सुकता मुझे भी हुई लगभग 27 वर्ष पूर्व वहाँ जाना हुआ था, लेकिन आज की उत्सुकता का कारण मुझे भी नहीं मालूम था । अन्ततः मैंने चन्द्रवल्लभ तिवारी से पूछा कि क्यों जा रहे हो । उसने कुमाऊंनी हिन्दी में बतलाया कि माँ कात्यायनी देवी का दर्शन बहुत ही पुण्य दायक होता है,जिज्ञासा मानवीय स्वभाव है, प्रश्न और किया हमारे इस आकाशवाणी अल्मोड़ा केन्द्र से क्या दूरी होंगी, उसने जानकारी दी बागेश्वर जाने वाले रास्ते पर ही यहाँ से आठ किलोमीटर से कम है, मैंने सुझाव दिया देवी के दर्शन सुबह करो तो अच्छा है, छुट्टी भी बचेगी और पुण्य भी मिलेगा,लेकिन बात मेरे मन में रह गयी कि भीड़ का समय समाप्त होने के बाद अवश्य ही कसार देवी के माँ कात्यायनी देवी मंदिर दर्शन

सूर्य मन्दिर कटारमल SunTemple

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मेहल का जंगल : कटारमल का सूर्य मन्दिर ************************************** मेहल का जंगल  : कटारमल का सूर्य मन्दिर  (Sun Temple Kosi KatarMal Near HawalBagAlmora Uttarakhand) हिमालय की उपत्यका  में बसे कुमाऊँ के मन्दिरों में उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जनपद से सत्रह किलोमीटर दूर एक हज़ार आठ सौ मीटर की उंचाई पर स्थित मन्दिर समूह का अपना अलग स्थान है , मेहल यानि जंगली सेब  के घने फलदार वनों के मध्य यह मन्दिर कुमाऊँ क्षेत्र में अपनी नागर स्थापत्य कला के विकास की पूरी कहानी को चित्ताकर्षक चिरस्थायी बनाये हुये है ।  मंदिर कला नागर अर्थात् नगरीय शैली, द्रविड़ अर्थात् दक्षिण भारत की शैली और बेसर अर्थात् दोनों की मिलीजुली संस्कृति के मंदिर  की कला होती है ।          हिमालय क्षेत्र में स्थित इस मन्दिर का कुछ भाग तो दर्शनीय है,और कुछ खण्डहर के रूप में अतीत  की स्मृतियों को संजोये हुये इतिहास के मूक गवाह की साक्षी भी है ।  लगभग पचास से भी अधिक मन्दिर समूहों में भगवान लक्ष्मी नारायण से लेकर ,शिव ,कार्तिकेय ,गणेश आदि की मूर्तियों को भली प्रकार से यहाँ देखा जा सकता है । इन मन्दिरों में छोटे – बड़े  अ

न्याय के देवता , गोलज्यू महाराज,

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 न्याय के देवता , गोलज्यू महाराज,  जिनके दर्शन बिना मन मानता नहीं ऐसी जगह है अल्मोड़ा  ? ¤¤¤ॐ¤¤¤ॐ¤¤¤ॐ¤¤¤ॐ¤¤¤ॐ¤¤¤ॐ¤ किसी ने लिखा भी है कि पृथ्वी पर ही स्वर्ग है, और वह भी भारत में ही है, बस आपकी भावना उत्तम कोटि की होनी चाहिये । आप देश के किसी भी हिस्से से प्रवेश करिये देव भूमि उत्तराखण्ड के लिए हल्द्वानी काठगोदाम का मार्ग सबसे सहजता और सुगमता का है । प्रकृति ने स्थान-स्थान पर स्वतः जलस्रोत, झरने, ताल, झील और नदियों का मनोहारी संगम किया है किन्तु इन नदियों से दूरी बना कर रहने में लाभ होता है क्योंकि इनके बहाव की गति बहुत तेज होती है, जानकार ही इसके समीप जा सकता है । जगह-जगह जंगली जानवरों का भी भय होता है, और सुनसान क्षेत्र में ही ये बाघ, गुलदार ,और तेंदुआ आक्रमण कर देते है । इस लिए यात्रा करने वाले को इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए, प्रदेश सरकार ने जगह-जगह पर अलग-अलग जानकारी लिख रखी है जैसे ट्यड़ म्यड़ बाट हिटो माठू माठ यानि रास्ते टेढ़े मेढ़े है सावधान रहें । जहाँ बादल प्रभावित क्षेत्र हैं वहां उसकी जानकारी जहाँ भालू प्रभावित है इसी तरह की जानकारी दी गई है।  वर्ष 1991 में, मैं  भी अपन

जिनमें कोयल की कला है, पुरस्कृत हो रहें है

  जिनमें कोयल की कला है ,  पुरस्कृत हो रहें है    ----------------------------------------------------   सच जानिये , पितामह भीष्म   अभी भी जीवित हैं , कर्म क्षेत्र में   युध्द चल रहा है , योध्दा बदल रहा है , मैदान बदल गया है  , समर में न जाने कौन मर रहा है | आज किसकी बारी मंच कोई हो   , सब में   सब सवाली है , धुंधलका गहरा रहा है , जैसे सब कुछ खाली-खाली हैं  |  कौवे भी तिरस्कृत हो रहे  , जिनमें कोयल की कला है , वही पुरस्कृत हो रहें है , सज्जनता धूल धूसरित हो रही है   |  नीड़ में घुसा  अनभला   है   , मुक्त जो मंच पा गया   , आहत कर  , छन्दबध्द   पंक्तियों को खा गया   | बेसुरे मंच से   चटखारे पा   रहे , सस्वर किस्मत पर गा रहे हैं   | गीत क्यों लिखूं  , चुरभईये दम ख़म से जी रहे हैं   | छंद अज्ञातवास कर रही  , वाह की कराह श्रोता भर रहा हैं   , नहीं चेते   तो जानों  , कविता कराह भर रही हैं   | कौवे भी तिरस्कृत हो रहे   , जिनमें कोयल की कला है , वही पुरस्कृत हो रहें है  , सज्जनता धूल धूसरित हो रही है   |  कर्म क्षेत्र में   युध्द

लंका

लंका युद्ध, युग युगों से चल रहा है | काल में , सब कुछ ढल रहा है | देव के साथ , दनुज भी पल रहा है | सीता का बयान , चल रहा है | कृषक के पीछे , सब चल रहा है | किसान का गरीबी से , जनम - मरण का नाता है । सीता यक्ष प्रश्न है , लंका , सुरसा का मुंह ? पुरुषोत्तम की सीता, या लंकारि की लंका, ब्रह्मचारी दौड़े, धैर्यवान दौड़े , मर्यादा दौड़ी , रावण लगा रहा है । सीता के उपक्रम में , रात दिन थका हारा । रावण की लंका , घर- घर की लंका , सीता कृषिकर्म की रेखा , सस्य उपजते देखा । लोभ -प्रीती का , कार्य व्यापार , मन की नहीं उदर की । कल्पना लंका बन गयी , पूरी सीता हडपने की , योजना सभी बना रहे थे । सभी पेट का , कार्य व्यापार चला रहे थे । सीता जहां की थी । सीता वहां समा ही गयी । अयोध्या में भी, चरण पादुका की आड़ में, राज कर रहे जो , सो न जनता के, न हमारे , अपशब्दों में भी लंका एक शब्द । जिसका डंका इसी अब्द । कुपोषित - वीभत्स , नहीं सुशोभित , जब - जब, जर-जोरू-जमीन, जोड़ने की बात, सीता की याद , लंका के साथ, रावण का नात, नश्वर लोक, किसका शोक, लंका आज भी, सीता आज भी, मौलिकता खोज रही , आर्यावर्त, पूर्वी -बंगाल, क

तू शहर बनों बनारस की

बनारस *****   तू शहर बनो बनारस की   मैं सांझ - सबेंरे भटकूं तुझमें ,   तू गली बनो घाटों   की ,   मैं सांझ - सबेरे भटकूं तुझमें ।   तू शहर बनो बनारस की ।।   तू फूल बनो बगिया की ,   मैं भौंरा बन बस जाऊं तुझमें ,   तू शहर बनो बनारस की ,   तू मृगदांव बनो तथागत की ,   तू शहर बनो बनारस   की ।।   तू लहर बनो गंगा माँ की ,   मैं हर - हर बहता जनजीवन में ,   तू असी बनो बनारस की ,   तू शहर बनो बनारस की ।।   तू नन्दी बन जा भोले की ,   मैं बेल पत्र रखूं करतल में ,   तू शहर बनो बनारस की ,   तू घंटी बन जा मंदिर की ।   तू शहर बनो बनारस की ।   रमता - जपता फकीर बनो ,   कूंचे   गलियों से घाटों की ,   तू शहर बनो बनारस की ,   धमक धूप और मंजीर की ,   तू शहर बनो बनारस की ।   मैं सांझ - सबेरे भटकूं तुझमें   तू शहर बनो बनारस की ।।            ******