जिनमें कोयल की कला है, पुरस्कृत हो रहें है

 

जिनमें कोयल की कला हैपुरस्कृत हो रहें है  

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सच जानिये,

पितामह भीष्म अभी भी जीवित हैं,

कर्म क्षेत्र में युध्द चल रहा है,

योध्दा बदल रहा है,

मैदान बदल गया है ,

समर में न जाने कौन मर रहा है|

आज किसकी बारी मंच कोई हो ,

सब में सब सवाली है,

धुंधलका गहरा रहा है,

जैसे सब कुछ खाली-खाली हैं | 

कौवे भी तिरस्कृत हो रहे ,

जिनमें कोयल की कला है,

वही पुरस्कृत हो रहें है,

सज्जनता धूल धूसरित हो रही है 

नीड़ में घुसा  अनभला है ,

मुक्त जो मंच पा गया ,

आहत कर ,

छन्दबध्द पंक्तियों को खा गया |

बेसुरे मंच से चटखारे पा रहे,

सस्वर किस्मत पर गा रहे हैं  |

गीत क्यों लिखूं ,

चुरभईये दम ख़म से जी रहे हैं |

छंद अज्ञातवास कर रही ,

वाह की कराह श्रोता भर रहा हैं ,

नहीं चेते तो जानों ,

कविता कराह भर रही हैं |

कौवे भी तिरस्कृत हो रहे ,

जिनमें कोयल की कला है,

वही पुरस्कृत हो रहें है ,

सज्जनता धूल धूसरित हो रही है 

कर्म क्षेत्र में युध्द चल रहा है,

समर में न जाने कौन मर रहा है|

 

 

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