न्याय के देवता , गोलज्यू महाराज,

 न्याय के देवता , गोलज्यू महाराज,  जिनके दर्शन बिना मन मानता नहीं ऐसी जगह है अल्मोड़ा  ?

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किसी ने लिखा भी है कि पृथ्वी पर ही स्वर्ग है, और वह भी भारत में ही है, बस आपकी भावना उत्तम कोटि की होनी चाहिये । आप देश के किसी भी हिस्से से प्रवेश करिये देव भूमि उत्तराखण्ड के लिए हल्द्वानी काठगोदाम का मार्ग सबसे सहजता और सुगमता का है । प्रकृति ने स्थान-स्थान पर स्वतः जलस्रोत, झरने, ताल, झील और नदियों का मनोहारी संगम किया है किन्तु इन नदियों से दूरी बना कर रहने में लाभ होता है क्योंकि इनके बहाव की गति बहुत तेज होती है, जानकार ही इसके समीप जा सकता है । जगह-जगह जंगली जानवरों का भी भय होता है, और सुनसान क्षेत्र में ही ये बाघ, गुलदार ,और तेंदुआ आक्रमण कर देते है । इस लिए यात्रा करने वाले को इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए, प्रदेश सरकार ने जगह-जगह पर अलग-अलग जानकारी लिख रखी है जैसे ट्यड़ म्यड़ बाट हिटो माठू माठ यानि रास्ते टेढ़े मेढ़े है सावधान रहें । जहाँ बादल प्रभावित क्षेत्र हैं वहां उसकी जानकारी जहाँ भालू प्रभावित है इसी तरह की जानकारी दी गई है। 

वर्ष 1991 में, मैं  भी अपनी सरकारी सेवा में मध्य प्रदेश से अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश पहुँच गया । दिन के ढाई बजे होंगें, ऑफिस के मुख्य द्वार पर सबसे पहले मेरी भेंट जिनसे हुई उनका नाम श्री बी एन झा था, उनको मैंने अपना परिचय दिया उन्होंने उदारता और उदासीनता के मिश्रित भाव के  साथ मुझसे मिलने पर अपने को समृद्ध महसूस किया और कहा आपका इतना ही सामान है । मेरे पास रख दीजिए । आकाशवाणी अल्मोड़ा मुख्य राजमार्ग से  लगभग पचास फीट नीचे ढलुआ राह बना कर प्रवेश द्वार से दाहिने दिशा में है, और उसके एक तल नीचे ऑफिस है वहाँ हम दोनों चाय के बहाने और लोगों से मिलने चलें गये, यहाँ के के वर्मा जमशेदपुर के प्रसारण अधिकारी से भेंट हुई झा जी देवघर बिहार के थे, भक्ति भाव से उन्हें न्याय के देवता के दर्शन की याद बातों ही बातों में आ गयी लेकिन उस समय लिपिबद्ध नहीं कर सका था ,लेकिन जिसनें चाय पिलाने का काम किया हेम चन्द्र तिवारी उसे मैं नहीं भूल सका । 22 सितम्बर को रांची से श्री मनोज कुमार जी का फोन आया तो बी० एन० झा जी की यादें अल्मोड़ा को लेकर  ताजा हो गई । सुश्री शान्ति शाह, मोहन सिंह डोलिया का हुड़का, कम्पीयर जगदीश पाण्डे, चन्दन प्रसाद,लच्छी राम, एस के पाण्डे मनोज बोरा बड़ी टीम सामने वालीबाल खेल होता था। अब न्याय समाप्त हो चला है। 

आखिर न्याय के देवता का दर्शन जरुरी क्यों है ? कैसे उनके मंदिर तक पहुंचे, बिना वहाँ जायें कहीं और जाना भी नहीं चाहिए । काशी नगरी में बाबा विश्वनाथ जी को शहर का कोतवाल , कालभैरव और न्याय का देवता माना जाता है उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है, उसी तरह पूरे पहाड़ के न्याय के देवता गोलू महाराज है ज्यू अर्थात् जी लगाकर कुछ लोग गोलज्यू महाराज को सम्मान देते है या महाराज भी कहते हैं । उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा के गोलज्यू महाराज की मान्यता वर्तमान में   पहले स्थान पर हैं वैसे आस्था की दृष्टि से चम्पावत से ही अल्मोड़ा के गोलज्यू महाराज की मान्यता आई,चम्पावत  में गोरलचौड़, नैनीताल के घोड़ाखाल में भी ग्वेल ज्यू, गौर भैरव के नाम से इनकी प्रसिद्धि है । कत्यूरी राजवंश की देन चितई का ग्वेल मंदिर है,  इनका निवास स्थान पहाड़ की चोटी  यानि डाना है,इस तरह से इसे डाना गोलज्यू महाराजा मंदिर भी कह सकते हैं। यह शहर बाल मिठाई, सिगौड़ी, और विशेष प्रकार का चाकलेट मिठाई के लिए मशहूर है। 

यदि आप बाहर से आ रहे हैं तो हल्द्वानी से नैनीताल के रामगढ़ या खैरना, या रामचन्द्र मिशन से क्वारब होते हुए,  जिस भी रास्ते आये लोधिया से जब ऊपरी ओर साधन चढ़ने लगे तो ध्यान रखें कि कर्बला नाम से जगह आयेगी लैप्रोसी मिशन भी यहीं है इसीसे बाहरी ओर से धारानौला का एक रास्ता है दूसरा बायें स्वामी विवेकानंद आश्रम,आकाशवाणी अल्मोड़ा ,दाहिने मिर्जा बर्गर से आगे बढ़ते विवेकानंद कृषि संस्थान आकाशवाणी अल्मोड़ा की फेज दो कालोनी होते हुए बाज़ार में दाहिने शिखर होटल से ऊपरी ओर चढ़ते पाताल देवी के रास्ते से नारायण तिवारी देवाल यानि एन टी डी से सीधे चितई पहुँच सकते हैं, जो लोग धारानौला के रास्ते से दुगालखोला होते हुए आयेंगे वे भी एन टी डी यानि नारायण तिवारी देवाल चौराहा पर ही पहुँच कर सीधे तौर पर चितई मंदिर पर आ जायेंगे, जहाँ अब दोनों ओर अपने साधनों को खड़े करनें की कोई परेशानी नहीं है भरपूर जगह है दोनों और जलपान की पूरी व्यवस्था मिलती है, बायीं ओर तो गधेरा है यानि निचला छोर है इसलिए सावधान रहने की जरुरत है दाहिनीं ओर मंदिर है इधर की दुकानें बहुत ही पुरानी है, फूल, नारियल, घंटी,बताशे लाल पटका सब कुछ मिलता है, बंदरों की भरमार है। अंदर प्रवेश द्वार से दोनों ओर पक्की सीढ़ियाँ बन चुकी  हैं लगभग पचास फ़ीट ऊचाँई तक चढ़कर बायें से दाहिने फ़िर उत्तर मुख करके कतार में पुरुष और महिला अलग अलग दर्शन करने के लिए जाते हैं लेकिन निकास के लिए एक ही छोटा रास्ता है, उसी रास्ते पर दाहिने दाहिने अनवरत हवन कुंड़ में हवन होता रहता है। मंदिर प्रांगण में सीढ़ियों के दोनों तरफ जिनकी अर्जी लगनी है वे बंधी हुई है, जिनको न्याय मिल गया है उनकी घंटी भी बंधी हुई है। बहुत अच्छा हुआ कि अब चितई ग्वेल मंदिर जो जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का  स्थित है । मंदिर के  न्याय के देवता अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है । ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। एक अन्य विवरण  के अनुसार गोलू देवता चंद राजा और बाज बहादुर की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए थे। गोलू देवता से जुड़ी दो तीन कथाएँ बहुत प्रचलित हैं लेकिन देव तो देव होते हैं मान्यता ही प्रबल है तो कथा की कोई आवश्यकता नहीं है, अभी तो लोग सुबह जाकर शाम तक दर्शन पूजन कर सकतें है।  मंदिर का नवनिर्माण 1919 में किया गया  है। इससे पहले भी हमारे पूर्वज ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। यहाँ के प्रधान पुजारी संतोष कुमार पंत, चितई  गोलू देवता के प्रयास से  अब यह मंदिर ट्रस्ट  के अधीन होगा,मंदिर खुलने बंद होने की नयी समयावधि ट्रस्ट के निर्देश से अभी नहीं जारी है पुरानी व्यवस्था चल रही है ,जिसमें सुबह-सुबह मंदिर कपाट खुल जाते हैं और भगवान् के स्नान ध्यान के बाद लगभग छह साढ़े छह बजे सभी सुविधा से दर्शन कर सकते हैं। 

 जिलाधिकारी महोदय और कमेटी के सदस्यों की देखरेख में गोलू देवता मंदिर में लोगों की आस्था  आयेगी यहाँ का दृश्य मनोहारी है। आत्मविश्वास और आत्मिक शांति मिलती है। आज हमारे सहयोगी पी एस मेहता, सेवानिवृत हो चुके हैं, झा जी हजारीबाग है,प्रायः खीम सिंह रौतेला की सिगौड़ी खाने शाम को बाजार श्री गौरी शंकर कर्नाटक जी, पुष्कर पंचवाल जी, मटियानी जी कंचन पंत जी बहुत कुछ खो दिया कुछ बिखर गये,  सिर्फ श्री नरेश सिह चौहान यादों को सहेजने के लिए अल्मोड़ा केन्द्र पर रहे, मनोहर सिंह बृजवाल जी ने आवास अल्मोड़ा बनाया है रहते कम है श्री अख़्तर रिजवी जी का गुलदस्ता सजाने वाले धनंजय शाह ने समय से पहले सेवा छोड़ दी और ईश्वरीय सेवा घर परिवार के लिए समर्पित कर दिया,आज हम हेम चन्द्र तिवारी को अपनी यादों में छोड़ भी नहीं सकें  और बाहरी ओर कांटो में एक बोर्ड फंसा हुआ है कुछ पढ़ सकते है लेकिन मन नहीं क्योंकि यहाँ से विदा हो रहे है एकाकी जैसे आये थे, खगमरा का आकाशवाणी कंकालों के टीले पर आज भी के एल सहगल साहब की आवाज़ में एक बंगला बने की आवाज़ में कुछ स्वर लहरियों के तार छेड़ने के लिए बेबसी का जीवन जी रहा है.......

















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