भैंसा गाड़ी
भैंसा -गाड़ी ********** युग-युगों का धन ,भक्ति शक्ति की नाड़ी । च क्र-सुदर्शन एक ही पल है मिल जानी , जो कल था दीख रहा ,जीवन धड़कन गाड़ी । अदृश्य मान हो रही बुग्गी, घट-घाट सुहाती , नगर डगर की नरक से पार लगाती भैसा -गाड़ी । काल चाल की बात का जीवन दाब घटाती , चौकोर नाप लिए तनका, न तिरछी न आड़ी, राजमार्ग पर चलती अपनी भैसा गाड़ी । मदमस्त चक्रमणित पगुराती अपनी गाड़ी , चूं चरर का राग सुनाती ,कटरी जंगल झाड़ी। ढ़ोते जाती मल-मलिनता पत्तल -हाड़ी , सबका-सब बटोर ले-चलती भैंसा गाड़ी । जब-तक चलती रही बुग्गी बन यम की गाड़ी , जन-मन के भाग्य रहे हँसी खुशी सुरक्षित , नरक जाते जीव आयु पूर्ति या स्वयं बीमारी। या वे जाते जिनमें चलती आरी और कुल्हाड़ी । भैसों को जिनने अपनी खेती में कर ली, प्रभु ने उनकी सुधी ली भर दी उनकी झोली , युग बदला छूटे भैंसे ,यम के बने असवार , यमलोक पहुँचने लगें जीव और सवार, जीव-जगत है माया ,यहीं छूट जाएगी काया , ना रह जाएगा पैसा, सबको ले जाएगा भैंसा , चेले ढूंढते मलिनता को ढोते मन वाली गाड़ी , अब मानव भूल ...