शैवाल गीत

 शैवाल -गीत 

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उकेरता हूँ,

गीत शैवालों के ,

प्रीत ,

रीत के बिखेरता हूँ ,

शैवाल के वितान पर ,

नया,

राग छेड़ जाता हूँ ।

बात,

नयी छोड़ जाता हूँ ,

कसक,

मीन की रह जाती है ,

कैलेण्डर चित्र सरीखे ,

अतीत हो चले शैवालों के ।

देखी किसने काई ,

सावन दादुर टेर भेजने के ,

केंचुआ विहीन मेड़ ,

छोड़ खेत की सीता देखता हूँ ,

पोखर छोड़ टिड्डीयाँ ,

लोहित शाम खोजता हूँ ,

शैवाल चादर थे,

मीन की धरोहर ,

वही तल्प टिड्डी की,

दादुर थे उसके चौकीदार ,

शरद सुहाते सिंघाड़े के,

शैवाल हुए संघाती ,

प्रति-पर्वों की ऊपज,

इसी से आती ,

पर जलमुर्गी खिंची लकीर सरीखी ,

प्रकृति की मार ,

शैवालों पर नीति के,

नये रुप को उतारता हूँ ।

बने दरारों के खेत ,

शैवाल,सीप,मोती निहारता हूँ ।

रेत में छवि अतीत की,

निज निखारता हूँ ।

शैवाल की ओट में निखरता हूँ

उभारता हूँ ।

प्रीत बहोरता हूँ शैवालों के साथ,

शोकाकुल पछताता हूँ,

ताल-तलैया-पोखर के घहराते संकट में,

गहराता जाता हूँ,

यक्ष -प्रश्न ?

सम्मुख शैवालों के,

गीत बिम्बित ,प्रतिबिम्बित करता हूँ ।

खीचता,खरोचता हूँ ,

नित मीत शैवाल गीत सहेजता हूँ । 

ताल-तलैयों में निगराता हूँ ।

शैवालों के गीत गाता हूँ ।

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