Victoria Lamppost
विक्टोरिया लैम्पपोस्ट
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अइसन ज़िनगी ,
रस्ता, बस्ता,
शेर,सियार,
कुकुर,बिलार ,
कोयल,कौआ, पपीहा क पुकार।
सब सुनत कट गईल ,
डाड़ा,मेंड़ी, खेत खलिहान,
बिहान, दिन, दुपहर, सझियार,
भयल अन्हियार,
माई आजी जोगावें दियना तुलसी चौरा,
बाबू, डरे से रहे, सब काबू।
राशन, डिपो तेल लाइन,
जमा अदला-बदली असली-नकली,
छेदहा-तेलहा, व्यथा कथा ,
हिन्दुस्तान वैसे चलत हवै,
सांझ सियापा ओढ़े चादर,
धुआंसे लकीर सांझ सकारें,
खेलाड़ी मैदानें लौटे घरे दुआरे,
गाय-बछवा जैसे पुकारें ,
पांव पखारे ,
माई के अंगना डिबरी क बाती,
संझियाती जगमग आती।
कांच की शीशी सूती क बाती,
घासलेट से उजियार कर जाती ।
बरीसन बीत गईल ,
चूल्हा के आग में सोंधी रोटी,
दुआरे नीमिया क पाती ,
अजुऔ भी सुहाती,
लाइन से ऑनलाइन जिनगी उरझा जाती ।
सझियारे दुआरे धूर उड़े माटी,
अंन्हियारे अतीत क परछाई देखत बाटी।
धीरे-धीरे पुरनका खड़हर दुआरे,
विक्टोरिया लैम्पपोस्ट निहारे ।
रोज सझियारें येही बेचारा ,
लियावे उजियारा ,
मईया ,अईया के उजार,
जिनगी के बयार,
बेचारे क उजार ,
प्रगति क बहार ।
शहरी बाबू भी जान लें ।
ई हर दिन संझा बेरी,
रहे त्योहार त जाना भईया:-
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ना बिजुरी है ना उजियारा ।
अब नहीं रहा वैसा सुधियारा,
नित सझियारे आता दुआरे,
ज़िनगी कट गई कौन निहारे,
आखिर अंधियारे की रौशनी,
दूर करेंगा, वही चढ़ेगा।
समय की सीढ़ी पर।
कांधे पर प्रगति की सीढ़ी,
हाथों में कर्म छानती कुप्पी
और केरोसिन का पीपा।
अब नहीं दीखती स्वेद मौन,
और अनवरत उजियार चुप्पी ।
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एक सहयोगी का सुझाव है कि इसे बोली में लिखें -
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ना बिजुरी है ना उजियार ।
अब ना रह गयल कोई सुधियार,
नित सझियारे आवै दुआरे,
ज़िनगी कट गई अब के निहारे,
आखिर अंधियारे के उजारे ,
दूर जेहि मुसीबत करारे ,
ओही सफलता परवान चढ़ा रे ।
समय के पावदान पैर पसारे ।
कांधे पे प्रगति के बिहान रे,
हाथवा में करमवा के कुप्पी ,
और विधाता के पीपा रे।
बही पसीनवा चुपचाप रे,,
अंन्हारे में उजियार रही हमार संसार रे ।
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