Mal,Item,Material, Smart,Good

 माल , आइटम ,सामान ,स्मार्ट,बढ़िया 

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पत्थर के घर्षण से निकली अग्नि , हिरण के सींग से उलझी अरणी  के घर्षण से उपजी अग्नि,ने मानवता को पेट से समृद्ध किया पत्थर की खरोच और बोलने की भांति - भांति की आवाजें मानवीय रिश्तों की  स्रोत बनीं । प्रगति पहियों के युग से बढ़ चला विष्णुगुप्त यानि चाणक्य ने सभी तरह से समाज को सुरक्षित रखने का शास्त्र दिया । 

 घर की सामाजिक पूजा-अर्चना के शब्द में सामान, माल ,आइटम भी आ चुके है, पूजन सामग्री लुप्त हो रहे है। गीत संगीत भी आइटम के विषय और तराजू पर तौले जा रहे हैं। सजावट ब्यूटीफुल है। आने वाले स्मार्ट लोग थे, खाने में माल कहाँ का है। सब सामान्य प्रयोगमूलक शब्द है । 

वस्तु विनिमय प्रथा के देश में मानवतावाद को व्यापारवाद के शब्द समाज और परिवार के साथ ही भारतीय व्यवस्था को तार- तार कर देगें यह कभी सोचा नहीं जा सकता है, इसका कारण उन्मुक्त बाजारीकरण और डिजिटल इंडिया के उपादानों का प्रयोग है, अभी तक न लीले जाने योग्य यानि अश्लील साइट, एप से सरकार जूझ ही रही थी शब्दावली से भी जूझने की जरुरत आ पड़ी है । टी आर पी , से निकल नहीं पाये थे, शब्दावली में आ फंसे है । सर्च इंजन की जैसे कोई जिम्मेदारी ही नहीं होती है, सरकार के अपने मीडिया चैनल के पुराने अनुभवी सजीव प्रसारक अशिष्ट शब्द पर प्रसारण रोक देते थे अब तो समाचार का वही विषय है, कार्य व्यापार है, उसी से रोजगार है। आने वाले  समय में और भाषा शब्दावली  का प्रयोग कैसा होगा निःसंदेह चिन्तनीय है । सर्च इंजन से लेकर सेंसर तक जवाबदारी होनी चाहिए  , यह एक प्रश्न है ?

सामाजिक जीवन में शब्द  बार-बार  परोसे जाते है  जो आने वाले समाज में व्यापक रुप से उद्योग जगत की देन रही है , व्यापारी से अधिक जनता ने इसे समझा ,अपनाया,खरीदा और इसकी विविधता को भी जन सामान्य ने समझा हांलाकि इस भाषा का उपयोग प्रचार प्रसार और ट्रक, ट्रेन, कार्गो एअरफ्लाइट से माल पैकेट आइटम सामान आते जाते रहते है ।

 पैकेजिंग उद्योग आने के बाद आइटम सामान माल से ज्यादा बढ़िया उसके पैकेट शो दिखावे का हो गया और इसी की मार्केटिंग शुरु हुई।  रेहड़ी, ठेला, बहली के बाजार खतम होते गये । गाँव के हाट सिमट गये, मेले दंगल लुप्त हो गए । जनाना बाजार अलग होता था, सब समानान्तर हो गया । सारे आइटम हो गए सारे, माल हो गए। सारे सामान हो गए। सब बढ़िया हो गए । स्मार्ट हो गए। 

सारी बात अच्छी लगती है । कपड़े के दुकान पर खड़े होकर बात करने की भाषा में पहनावे के साथ स्मार्ट लुक, ब्यूटीफुल, और राह चलते भी स्मार्ट शब्द वही शब्द बस बोलने वाला बदल जाता है । आखिर दुकान, माल,शाप से निकला शब्द सड़क पर आते ही विद्रूपता और घटियापन की श्रेणी में आ जाता है । दुखद तब होता है जब यह समाजसेवक औद्योगिकीकरण से प्रभावित व्यापारिक शब्दावली प्रयोग करें प्रतिरोध दूसरा पक्ष भी करें, तो या तो उन दोनों को सामाजिक आत्मशुद्धि के व्रत का संकल्प लेना चाहिए कि भारत की जनता के बीच  ऐसी शब्दावली नहीं आनी चाहिए जो बाजार से प्रभावित है, और घिनौने होते बाजारवाद के शब्द को सभी को पहचानने की भी जरुरत है। इस देश में मर्यादित जीवन, ही संकल्प है संस्कार है, जो खुशियों का पिटारा संजोकर भविष्य को संवारता है, यह दुखद है, कि छोटी-छोटी बातों में न्यायपालिका और चुनाव आयोग भी शब्दावली को लेकर चिंतित हो और  सुधार की अपेक्षा करें नोटिस दें,जनहित के कार्य इन सब से प्रभावित होते है और अशिक्षित समाज का शोषण होता है, सभी का धर्म है शाब्दिक मलिनता की सफाई अभियान से जुड़कर नये मन मस्तिष्क से स्वस्थ भारत के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे उचित मायने में यही मानवता की सेवा है । 

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