मेहनाजपुर

                                  मेहनाजपुर 

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मेहनाजपुर में मैंने क्या ऐसा था कि मेरा साठ साल पहले का बाल मन एक बार फिर इस  कोरोना काल में अपने आप को ले जाकर  वैसे ही भ्रमणशील अवस्था में छोड़ दिया जहाँ मैं अपने आपको उसी रुप में आत्मिक रुप से देखता हूँ कि इस स्थान पर बायीं ओर राजकुमार साव की परचून की दुकान है जो बनारस पाण्डेयुर चौराहे के सरजू साव के सगे सम्बन्धी रहे दाहिनी ओर जूनियर हाई स्कूल मेहनाजपुर बड़े अहाते के साथ था। यहाँ कोई दो राहा तिराहा या चौराहा नहीं एकदम सीधा रास्ता सिधौली से तरवां की ओर जाता हुआ या चिरैयाकोट की बसें लगी मिलेंगी। वाहन चलाने वाले से लेकर टिकट लेने वाला भी सभी को अच्छी तरह से जानता था, कौन किस गाँव उतरेगा छोटा बच्चा है तो संभालकर उतारने की पूरी जिम्मेदारी लेता है । सभी सुरक्षित जाते आते है हमारी तो यादों में आज भी ऐसा ही मेहनाजपुर बसा हुआ है । जैसा हम अपने नानी के घर जाते समय बस स्टैंड परचून की दुकान उसके पीछे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उसी से जुड़ी नहर के दोनों ओर के रास्ते बस बायें रास्ते पर चलें डीह बाबा से आगे बढ़ते ही शिवाला  उसके बाद नानी का घर सामने कुआं है। हमेशा जगती पर एक लोटा और रस्सी जिसे लेजुर कहते साथ मे बंधी बाल्टी रखी है। नहर के किनारे किनारे नीम और भी हरे भरें पेड़ मन को अच्छा कर देते है । अच्छा तो तब और भी लगता जब दालान में आधा मुंह ढके नानी की आवाज आतीं आ गइला हमार बाबू । और मै निहाल हो जाता।

इन जीवन सुख के पल बिताये बहुत समय निकल गया है, गवाह मेहनाजपुर आज भी है। नाना और नानी अब नहीं रहे मेरी उपस्थिति भी वहां नहीं रही, यादें और मन वहीं रह गये मेरी आयु के लोगों की यादें रही मन में सोचने लगा कोरोना में दरवाजे पर लेजुर और बाल्टी नहीं होगा, खेती से जुड़े लोग पहले ही मनरेगा में जाॅब कार्ड के शिकार हो गये कुछ पुराने लोग जुड़े रहे। उनकी समझ यही रही कि सारी कवायद पेट के लिए है तो खेती से जुड़े रहे फालतू के कार्ड में नहीं फंसे कुछ पढ़ने के बाद बाहर चले गये। और नये रुप का मेहनाजपुर बन गया। इन्हीं सब में टूढ़ी दादा का अपना परिवार था जो हमारे नाना के  घर परिवार का मुखिया समान ही था उसकी सलाह घर में सभी मानते थे । बदलते दौर में उसके परिवारिक जीवन में बदलाव आया। 

पिछले साल की तरह इस बार भी टूढ़ी दादा अपने बेटे रामराज के साथ फागुन पूर्णिमा से पहले ही बरवां मेहनाजपुर होली त्योहार मनाने कल्याण से चलें आये,ट्रेन में यात्रा के दौरान रास्ते मे आजमगढ़ के और भी रहवैया मिले। टूढ़ी दादा का मन पूरी यात्रा में ऐसे लगा रहा जैसे मुम्बई और बनारस कोई दूरी ही नहीं हो । बनारस महानगरी एक्सप्रेस के पहुंचते ही ऐसा लगा, जैसे दादा को कोई थकान नहीं लगी और सीधे बस डिपो में आकर मेहनाजपुर पहले पहुँचने वाली बस में दादा जगह की जुगाड़ के साथ  बैठ गये। साथ में बेटा बहू को भी लेकर बैठा लिया । 

दादा की बस गन्तव्य तक पहुंची और सीधे घर न जाकर तिवराने चले गए और बेटे बहू को सीधे  घर भेज दिया। गाँव के पुराने जमीनदार बड़े तिवारी को  मलिकार साहब बोलते हुए कहे-टूढ़ी का आपको, पालागन बोल रहे हैं ,कहते हुए  वापिस अपने घर जाने की अनुमति ली। 

 सीधे टूढ़ी दादा अपने घर गये, वहाँ घर परिवार में जाकर देखा, रामराज और उसकी बहू झाडबुहार करके सब ठीक-ठाक से बना कर दादा को स्नान ध्यान की व्यवस्था बनाने लगी हैं ।  दिनोंदिन  गाँव में दादा सबसे नित्य भेंट मिलाप करते, बेटे की छुट्टी खत्म हो गयी और उसके वापसी का समय आ गया । हल्की-फुल्की कोरोना  महामारी की आहट से गाँव में कुछ पता तो नहीं था । इसलिए दादा निश्चिन्तता के मन से अपनी वापसी की ख़बर तिवराने ठकुराने सब दरे पठै के फुर्सत हो गये कि कल बिहने सब खाये बनावें के समान ठीक से बांध के कल्याण चहुँप जायेंगे  । घर में जल्दी सबेरे वाली बस पकड़ लेने की हिदायत देकर सो गये। 

सबेरे नहा निपट टूढ़ी  दादा तीन पोटरी में चार सामान और खायें बदे ढूढ़ी-बाटी , ठोकुआ और पानी अलग झोलिया में रख अपने कांन्ही में टांग के आगे आगे चल दिए । रामराज चाचा जी के बच्चों को कुछ देकर बिदा लिया । बहू भी भारी मन से अपना गाँव छोड़कर परदेश जाने के लिए निकल पड़ी ।

बायीं पट्टी नहर के होकर दादा चल रहे थे, उनके पीछे बेटा बहू सामान लेकर चलते टूढ़ी दादा अपने बेटे रामराज को बतला रहे थे कि बेटा आगे जो नीम का पेड़ है, वहीं डीहबाबा का मंदिर है हमारे गाँव का सबसे पूज्य है । सारे धर्म कर्म यहीं अनुमति लेने के बाद किये जाते हैं । अचानक दादा रुक गये और बैठ कर उस वृक्ष के सम्मुख होकर प्रणाम किया और बेटे बहू को भी उसी भाव से आस्था में जोड़ा,फिर बतला रहे थे कि जब जमींदारी थी तो तिवराने के बड़े तिवारी मलिकार साहब ने ईट भट्टे के पास के तालाब और किनारे का मंदिर साथ में दो कोठरी मुझे रहने के लिए ऐसे ही दिया था मैंने पूरी जिन्दगी उनके घर में पानी भरने और बैलों के लिए मंड़ई छाने की दीवार बनाने का काम इसी तालाब की मिट्टी से किया और जरुरत पड़ने पर कुल्हड़,सकोरा,गगरी, मटकी आदि भी बनाता था दुआरे पर जो चाक रखी है उसे मलिकार ने खुद हमारी पसन्द से खरीद कर दिया है साथ में पूरी रात मलिकार के घर चौकीदारी  भी हम करते थे । लेकिन कभी पैसा कौड़ी की जरुरत नहीं पड़ी । सब कुछ मिल जाता था । जब मशीन आ गयी काम कम हो गया । लेकिन मलिकार साहब के इहाँ सम्मान वैइसे है । बातें करते करते बस स्टैंड आ गये। बस पहले से ही खड़ी थी । दादा ने रामराज से कहा देख लो कुछ छूटा तो नहीं। 

इतने में कंडक्टर ने आवाज दी टिकट और रामराज ने तुरन्त तीनों सीट दिखा कर पैसे दिये और सुरक्षित टिकट दादा को दे दिया। 

बस इटैली वाले खेत अपने ईट भट्टे और मकान के दर्शन कराते आगे बढ़ने लगी उसकी स्पीड़ तेज़ हो गई थी (रामराज अपने बापू से कहने लगा कि बाबू  जैसे शहर में बिजुरी के खंभा जमीन में धंसा रहता है तो शहर के केबल,ब्राडबैंड का तार लटका देते हैं अपने गाँव में येह बार प्रगति देखें सीमेंट के खंभा खेते खेते धंसा पड़ा है बिजुरिया पता नहीं कब आवत है लेकिन एक बात है सब खंभे पर कुछ न कुछ लिखा पढ़ा जरुर है टूढ़ी पूछें कुछ ख़ास लिखा है का ?नाहीं बाबू खैनी गुटका यही सब अरे ई सब  जहर है मेटावा चाही  । )

देखते ही देखते देवगाँव ,चन्दवक, चोलापुर, पाण्डेयुर, कचहरी, अंधरापुल,होते हुए कैंट बस स्टैंड पर आ खड़ी हुई। 

टूढ़ी दादा यात्रा में फुर्तीले हो जाते थे झट सड़क डाककर बहू-बेटे को गोहराने लगे - दोनों पैड़े देखके रस्ता डकिहौ ।अब क्या तीनों जने स्टेशन वाराणसी के सामने खड़े हो गये मंदिर सरीखा स्टेशन  देख कर टूढ़ी दादा खुदबखुद हाथ जोड़ पड़े । इतने में बाये हाथ बजरंगबली का मंदिर दीख पड़ा,  दादा बोले बेटा, बहुरियां संगे दर्शन करि लौ शुभ होत है ,और स्वयं भी दर्शन कर लिया। 

स्टेशन के अन्दर आकर बेटे से कहा जाओ । पहलें पता करो । कौन लाइन पर गाड़ी खड़ी है और कब चलेगी । बेटे ने थोड़ी देर में ही सब पता करके बताया कि चार लाइन से चार बजे जायेंगी । महानगरी एक्सप्रेस है । 

टूढ़ी दादा ने कहा तब तो टाइम है , चलो मुख शुद्धि कर लिहा जाय । दुलहिन से कहो पोटलिया खोलै। ठेकुआ खिआवै ,फिर बाटी  खावा जाई, देखौ, पानी पीके फिर भर लीहौ, रस्ते में उतरे क काम ठीक नहीं है। 

धीरे-धीरे समय सरकता गया ट्रेन भी अपने समय पर सभी यात्रियों को लेकर चल दी ।  टूढ़ी दादा तुरन्त लेटकर ट्रेन में आराम करने लगें । दिन रात बीतने के साथ नई सुबह आई और कल्याण स्टेशन भी आ गया आराम से अधिकांश यात्री उतरे । 

इस स्टेशन के दोनों ओर फैक्ट्रियों का जंजाल है। इसी में पास की कलपुर्जा के कारखाना में रामराज भी कारीगर है । क्या काम करता है यह टूढ़ी और उसकी बहू रामरतिया को भी नहीं मालूम है । अभी मुम्बई आये चार दिन ही बीते थे कि रामराज ने अपने बापू से कहा कि बापू बहुत बुरी खबर है कि पूरे मुम्बई की सभी कम्पनियां बंद होंने वालीं है ।बड़ी खतरनाक बीमारी फैली है बचना जरुरी है,  नहीं तो महामारी से हम सब जान से हाथ धो लेंगे। अब क्या करे । शाम को पता चला प्रधानमंत्री जी कुछ कहने वाले है रात आठ बजते-बजते यही हुआ बारह बजे रात से सब बंद हो गया। 

पता चला सारे कामगार दौड़कर फैक्ट्री मालिक के दरवाजे गये मालिक ने कहा चुपचाप अपना काम करते रहो कल देखते हैं । धीरे-धीरे पता चला ट्रेन बस सब कुछ बंद फिर कच्चा माल फैक्ट्री में आना बंद हो गया । मजबूर होकर फैक्ट्री बंद करनी पड़ी। मालिक जैसें तैसे कुछ पैसा देकर सभी को विदा किया रामराज की भी विदाई हो गयी कहाँ जाये कितने दिनों के लिए जाए । रामराज बहुत सारे प्रश्नों के साथ घर लौटा । उदास और दुःखी मन देखकर टूढ़ी ने पूछा बेटा क्या हुआ-फफक कर रोते हुए टूढ़ी को पकड़कर रामराज ज़ोर से रोने लगा कहां जायें  ? कहाँ रहे ?  क्या खाये ?  कैसें जीये  ? बापू अब जिन्दगी नहीं चाहिए। फैक्ट्री बंद हो गयी। मालिक बेचारे बेहाल होकर बंद कर दिए । अब तो मकान का भाड़ा कैसे देंगे यह भी  समस्या होगी। हमें कल्याण छोड़कर वापिस गाँव जाना होगा। समस्या दूसरी है कोई साधन भी नहीं चल रहें हैं। 

शान्त मन से टूढ़ी सब सुनते रहें । शायद बेटे को बहू के सामने दुःखी देखकर पिता की ऑखों के ऑंसू सूख गये, सोचने लगे इतनी लम्बी यात्रा करने के बाद भी इस बहू को उफ के शब्द मैंने नहीं सुनें भूख की बात कभी नहीं सुनी कितना बड़ा नारी हृदय होता है और रामराज तुम पुरुष होकर दुःखी हो । बहुत ही अच्छी बहू है । गाँव चलेंगे चाहें जैसे भी चलेंगे आज मकान मालिक को बतला दो कि हम जहाँ काम करते थे वह  फैक्ट्री बंद हो गयी । 

रामराज ने बापू के कहने पर मकान मालिक को बतला दिया । मकान मालिक ने कहा ठीक है कोई किराया बिजली बिल मत दो कल सबेरे मेरी ट्रक कटनी जा रही है क्योंकि पेट्रोल डीज़ल भी नहीं मिलेगा इसलिए उसके मालिक ने गाड़ी वापसी मांगी है उसी से चले जाना मैं उसे बोल दूंगा और यदि उसका कोई परिचित यूपी का मिला तो आगे भी भेजने की व्यवस्था करा देगा, फिर फैक्ट्री चलेगी तो जैसा मन करेगा सोचना। 

अभी तक रामराज रो रहा था , मकान मालिक ने अपने शब्दों से उसके मन को हल्का कर दिया । 

मकान मालिक को कुछ कहता तबतक ट्रक वाला आ गया, उसको समझाते हुए मकान मालिक ने कहा ये रामराज है ट्रक ड्राइवर ने कहा पहचानता हूँ कम्पनी में देखा है, कल सुबह अपने साथ इनके परिवार को लेते जाना फिर दोनों ने मालिक को  प्रणाम किया । 

घर गृहस्थी तो कुछ थी नहीं जमीन चारपाई और दरी चादर बनाने खाने नहाने का सामान भर ही तो था। 

सबेरे सबेरे ट्रक की आवाज आई सभी नहा धोकर तैयार थे । सीधे ट्रक में पीछे की सीट पर जा बैठे, ड्राइवर के साथ एक आदमी और था जो शान्त था। यह सब चल रहा था, टूढ़ी दादा चुपचाप परिवार में परिणाम और भविष्य के लिए योजना के चिन्तन में खामोश रहें, बहू रामरतिया भी शान्त थी । भुसावल  से आगे बढ़ने पर दादा ने देखा ड्राइवर गाड़ी एक किनारे खड़ी करके कुछ खाने की व्यवस्था करने के लिए उतरना ही चाहा कि टूढ़ी दादा बोल पड़े बेटा खाने के लिए पराठे और परवल की सब्जी है थोड़ी मीठे-मीठे ठोकुवे भी । ड्राइवर ने कहा नहीं बाऊजी एक परिचित ड्राइवर आगे जा रहा है उसकी गाड़ी आगे खड़ी है मिल कर आता हूँ आपको कुछ कमर सीधी करनी हो तो उतर कर आराम कर लें। 

    पांच-दस मिनट बाद ड्राइवर रतन सिंह वापिस गाड़ी पर आ गया बोला हुकुम हो तो आगे गाड़ी बढ़ा दूं सभी की सहमति से रतन सिंह फिर आगे चल पड़ा बताने लगा कि जो आगे गाड़ी वाला साथी है अपना दोस्त है मिर्जापुर जायेगा आपको कटनी में बैठा लेगा यह भी अपने मालिक का ही आदमी है । मन ही मन रामराज ईश्वर को धन्यवाद देता जाता कि मेरा मालिक कितना बड़ा है मैं अब अपने देस पहुँच ही जाऊंगा रात के समय कटनी पहुँच गये। वहीं कुछ खाया वैसे इतनी थकान और कमर में दर्द की यात्रा थी कि पैरों में हल्की-फुल्की सूजन आ चुकी थी किन्तु सबको भुला कर आगे की जिन्दगी कैसे चलेगी यही सोच रहा था कटनी घंटे भर रहने पर सारे दर्द खो गए रतन सिंह ने बताया ये दुर्गा पाल जी है माँ विध्यवासिनी के रहने वाले हैं । जिन्दगी बहुत बड़ी है फिर कभी भेंट होंगी अभी देखिये आगे किस्मत हमें कहाँ ले जायेगी।  दोनों ड्राइवरों ने आपस में हाथ मिला कर एक दूसरे को विदाई दी ।  

ट्रक में  रात की यात्रा पर  कुछ अलग दृश्य देखने को मिलता, टूढ़ी दादा सहसा नजदीक से कोई पहाड़ के ऊपर की ओर जाती हुई बिजली की रौशनी को देख कर अचंभित हो उठते । रास्ते में ड्राइवर दुर्गा पाल रोक- रोक कर चाय पिलाता तो कुल्हड़ को देख कर टूढ़ी दादा को अपने हाथों से बनाकर गाँव में घर - घर दीयना, कुल्हड़ आदि की याद आने लगती , अब लगा कि फिर से अपनी पुरानी आत्मनिर्भरता की ओर हमें ही नहीं हमारी-आपकी पीढ़ी को आना होगा । यही सोचता रामराज के भविष्य के कारोबार को सोचता  चला जा रहा था ।  रह रह कर नींद भी आती, दुर्गा पाल आवाज लगाता बाबू जी आपको अपना जमाना कैसा लगता है । कुछ बोलवाने का प्रयास कराता मैं डर के कारण बात नहीं करता । उसी दुर्गा पाल की ट्रक पर लिखा था चलती गाड़ी में ड्राइवर से बात नहीं करें । टूढ़ी दादा कहते कभी दुर्गा पाल जी आप मेरे आजमगढ़ जरुर आइयेगा  ।

 जी आऊँगा जब मेरी गाड़ी जायेंगी और खुश हो कर ट्रक में लगे गीत सिस्टम से देवी माता के भजन सुनाने लगा । अब ऐसा लग रहा था कि हम सभी पहाड़ से नीचे की ओर आ रहें हैं। 

दोनों ओर घने जंगल धीरे-धीरे दिन निकलने लगा, दुर्गा पाल ने बतलाया कि हम आपको सीधे बनारस के नजदीक छोड़कर चले जायेंगे । इमलिया चट्टी के पास वहां से वाराणसी कैंट की बस हमेशा मिलेंगी । आप समझ लीजिये दो घंटे और लगेंगे। यह समझिये कि महामारी की वज़ह से रोड़ ख़ाली मिल गयी नहीं तो टोलप्लाजा पर ही चार -चार घंटे फंसे पड़े रहते हैं । आपलोगों के साथ समय और दिन अच्छा लगा । अच्छा अब आपका स्टापेज आ गया है। आराम से उतर जाईये दाहिनी ओर से बस मिलेंगी। थोड़ी देर में बस मिल गयी, और एक घंटे में लगभग एक बजे दिन में हम सब बनारस पहुँच गए । समय रहते सीधे आजमगढ़ मेहनाजपुर की बस में बैठे यहाँ शहरी जीवन लगभग शान्त था। लोगों की आवाजाही बंद थी बस में सवारी बड़ी मुश्किल से मिल रही थी वह भी पूछ पूछ कर और हमलोगों को प्रवासी माना गया । मनमानी किराया था बेटे ने कहा समय देखिये घर पहुँचकर सब ठीक हो जायेगा। 

शाम चार बजते-बजते हमलोग मेहनाजपुर स्कूल के सामने बस से उतर गयें। राहत की सांस लेते हुए टूढ़ी दादा ने कहा चलो अपने घर में रुखी सूखी जैसे भी होगा जिन्दगी चलाई जायेंगी। रामराज सारा सामान उठा कर अपनी पीठ पर रखनें जा रहा था की तिवराने के बड़े तिवारी मलिकार साहब सामने बाज़ार में टूढ़ी दादा को देख कर बोलें अरे भाई तुम तो बाम्बे गये थे । सिर झुकाते हुए टूढ़ी दादा ने कहा ऐसी महामारी आयी है कि फैक्ट्री ही बंद हो गयी ।  कोई बात नहीं है खाने आदि की परेशानी हो तो अनाज घर से ले जाना । अरे साथ में बहू भी है क्या अभी चले आ रहें हो चलो घर चलो । 

 घर पर सामान के साथ पूरे परिवार को बुलाकर बड़े तिवारी ने अपने घर की बुजुर्ग से बहू को नेग दिलवाया और कहा कभी किसी तरह की परेशानी हो तो अपने ससुर को भेज देना इनका बहुत एहसान है,  हमारे परिवार की बहुत सेवा की है। एक काम हमारे मन में है यहाँ लोग प्लास्टिक के गिलास में दुकानों में चाय पीते है अगर टूढ़ी और तुम सब मिलकर इसे शुरु करो तो शुद्ध साफ़ और अपना रोजगार फिर शुरु कर सकते हो। हाँ,जो डीज़ल महंगा हो रहा है उसे देखते हुए मैं फिर से बैल का घर, मंड़ई की दीवार बनाने वाला काम सब कुछ अपना पुराना हुनर रामराज को सिखा दो, फिर देखो दुनियां तुम्हारी कहाँ से कहाँ पहुँचती है । अच्छा जाओं घर मैंने तुम्हारा बहुत समय ले लिया है । इस महामारी में मुझे तुम्हारी बहुत चिन्ता रही अच्छा हुआ लौट आये अपने पर आत्मनिर्भर तो परिवार को बना सकोगे । 

टूढ़ी दादा के मन में जितनी पीड़ा थी उसे आज पता चला कि पाप और पुण्य का पेड़ खुद लगाना पड़ता है, और समय आने पर खुद ही फल देने लगते हैं बिना कहें बड़े तिवारी मलिकार साहब ने काम भी बताया साधन भी रोजगार भी और आत्मनिर्भरता की सीख दी । 

अगले दिन पोखरे से थोड़ी मिट्टी बिना कहें बहू निकाल लाई उसके उत्साह को देखकर तो मैंने भी चाक को बिछा दिया और मिट्टी को फेटने लगा यह देखकर रामराज ने कहा बापू आपकी उमर हो गयी है आप छोड़ो देखों हम कर लेते हैं कि नहीं इतने में बहू ने कहा चाय तैयार हो गयी है। टूढ़ी दादा बेटे के साथ कमरे में चाय पीने चले गए मौका देखकर बहू ने स्वयं कुल्हड़ बनाने की कोशिश की और चाक पानी धागा सब साथ और समझदारी का अचूक संगम देखकर ससुर अचंभित हो गये बोले बेटा तू रोटी बनाना नहीं सीख सका बहू ने तो जिन्दगानी सीख ली । अब तो बड़े तिवारी मलिकार साहब को बताऊंगा कि बहू चाक चला लेती है फिर क्या था पूरे गाँव के लोग और लडकियों में बहू की आत्मनिर्भरता की पढ़ाई के पाठ को देखकर सभी मेहनाजपुर बाज़ार वालों ने प्लास्टिक की गिलास का बहिष्कार किया और अपने गाँव की बनी कुल्हड़ को फिर से जीवन में जोड़ना शुरु किया । कुछ ही दिनों बाद पता चला कि सरकार ने भी ऐसी योजना चला रखी है लेकिन आज उसी गाँव के बस स्टैंड के सामने स्कूल प्रांगण में महामारी के इस दौर में साफ सफाई और उद्यमिता का सम्मान टूढ़ी दादा की बहू को देते हुए बरवां गाँव के तिवारी जी को जितनी खुशी थी उतनी शायद और किसी को नहीं रही होगी । तिवारी जी ने कहा अपने गाँव की मटिया अपनी बिटिया के हाथ का उद्यम सबके भाग्य में सम्भव नहीं है यह आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाती महिला जागृति है । हमें सजगता से और भी अपने पारम्परिक संसाधनों से ऐसे ही समय जुड़ने की जरुरत है, टूढ़ी दादा के ऑखों में बरबस ऑंसू निकलते जा रहे थे, उनके समीप जाकर बड़े तिवारी ने पूछा अरे रामराज के पिताजी आपको क्या हो गया, टूढ़ी दादा बोल पड़े सरकार बहू भी घर परिवार की  प्रगति में आगे बढ़ जायेंगी यह तो आपका आशीर्वाद है और ऐसा लग रहा है कि मैं कोई सपना देख रहा हूँ जो सच हो गया है। 

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