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जसुली लला ,जसुली बुड़ी या जसुली शौक्याणी

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                                                 हम जी कर क्या करेंगे!                                               ******************                              जब दिल ही टूट गया ?                                                       ****************** # भले ही आपने यह गीत स्वर्गीय कुन्दन लाल सहगल साहब की आवाज में सुना हो। शौक्यानी दांतू गाँव के अन्तरात्मा में भी यह बोल उस समय नहीं आया था। मैं अपनी यायावरी तो नहीं सेवानिवृत्ति के आखिर के दिनों में मुन्स्यारी की यात्रा पर अपने शुभचिंतक श्री जगदीश सिंह खाती और श्रीमती मधुसनवाल , पूरन सिंह मेहता , के साथ खलिया टाॅप होते हुए आगे बढ़कर निकला ही था कि दाहिनी ओर गायत्री मंदिर का नवनिर्मित भवन देखकर मन प्रसन्न हुआ। भयानक झरने , बुग्याल , शोर मचाती नदियां टूटे पहाड़ रोंगटे खड़े कर देते आगे दाहिनी ओर लो पावर टेलीविजन सेन्टर पता चला कभी( 1962) यहाँ आकाशवाणी केन्द्र से अनुप्रसारण होता था । मेरा मन ठहर गया । उसी के समीप नीचे की ओर जाता हुआ रास्ता लगता था कि कोई बाजार क्षेत्र है , पता करने पर ज्ञात हुआ कि जोहार घाटी है , तिब्बती बा

SERAMANDAL OF UTTARAKHAND

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  मैं अगर बिछड़ भी जाऊँ कभी मेरा ग़म न करना । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ मेरी याद करके कभी आँख नम न करना  । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ तू जो मुड़ के देख लेगा मेरा साया साथ होगा । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 卐卐卐卐卐卐卐卐ॐ卐卐卐卐卐卐卐 जब ज़िन्दगी को बहुत-बहुत नजदीक से देखता हूँ ,सोचता हूँ, पाने के लिए कुछ नहीं है, खोने के बहुत कुछ है, लेकिन जो अपने हो तो उनमें कुछ नाम ऐसे है जिनसे कभी नहीं मिला अनाम किन्तु अनन्य परिचित आत्मीय भाई श्री सुमन्त मिश्र, विषम परिस्थित में भी सभी से जुड़कर कुशलक्षेम बाबा विश्वनाथ दरबार का पुण्य प्रसाद सब तक बजरंग बली संकटमोचन बाबा का आशीर्वाद सभी को देने की  भावना, ताकि जाने-अनजाने पर नहीं कोई  संकट किसी भी समय पर  आन नहीं पड़े ऐसे  को  वंदन नमन  है । उनके महान कार्य और योगदान साथ ही लेखनी, जो हमें प्रेरित करती है,उनकी नित्य कृति जो है देखकर,पढ़कर पाओ वही सुखद है । अन्तर्मन में रखने का कोई लाभ नहीं सो आज बागेश्वर के नीलेश्वर और भीलेश्वर चोटी के बीच पहुँच चुका हूँ । अपने उत्तराखण्ड सेवाकाल के दूसरे दौर के प्रभार के समय अपने केन्द्राध्यक्ष कार्यभार के अन्तर्गत आकाशवाणी का बागेश्वर क

अभिनेत्री का उत्तर

 अभिनेत्री का उत्तर   ¤¤¤¤¤¤¤¤¤ एक साक्षात्कार में अन्तरराष्ट्रीय फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राँय  से " कैमरा"शब्द का हिन्दी किसी ने पूछा तो उन्होंने प्रत्त्युत्तपन्नमति भाव से उत्तर दिया और 'प्रतिबिंब पेटी 'शब्द बतलाया । आज यह किसी भी आकार में हो सकती है ।  सेल्फी हाथ में डंडा लेकर समयमान निर्धारित करके भागकर,  अपने होठों को चोंचनुमा, रोते हुए, गाते हुए, हँसते हुए अपने केशों को जैसा चाहिए फेर लिजीए । मन में जो भाव रखिये वैसी फोटो रख लीजिए । चित्र तो उल्टी परिभाषा की छवि देगा और आप उसमें भी खुश होंगे । सम्पादन द्वारा सीधा भी कर लें , लेकिन शब्द अक्षर का क्या होगा, सजीव की निर्जिवता की ओर ले जाने का और फूल माला से श्रृंगारित श्रद्धासुमन की भेंट चढ़ने वाले के प्रति प्रतिक्षण बढ़ता रोमांच  दिखाई पड़ जाएगा।  मोबाईल व्यापार है और आम जनता विशेष रुप से नौजवान युवा इसमें उलझता है ।  अनावश्यक चित्र लड़कियां नहीं रखती और न खीचती परोसती है, भले उन्हें मोबाईल मिले तो खेलकूद कर सकती है ।  प्रतिशतता के हिसाब से  फेसबुक और ह्वाटस्एप पर भी लडकियाँ दूरी बनाए रखने में अपने को सुरक्षित  म

बापू और हिन्दी

 बापू और हिन्दी  ~~~~~~~~~ हे चिर स्मरणीय; वन्दनीय बापू  ! स्वीकार करों जयन्ती का अभिवादन,  आप शान्त,  सौम्य मौन हो उदार।  जन मन की हिन्दी भाषा सबके द्वार,  उत्कर्ष पुंज बन प्रकाश के पारावार,  हे चिर स्मरणीय , वन्दनीय बापू! स्वच्छता उद्यम ही युग का आधार,  कथा-कहानी का नागरी में हो रहा सर्जन,  ब्रज अवधी में राम कृष्ण का भजन,  ऐसे बापू आपकी हिन्दी का है वंदन।  स्वीकार करों , जयन्ती का अभिवादन।  हे चिर स्मरणीय,  वन्दनीय बापू! गीतों में अब तो सजते पर्वों के दिन,  हर द्वार से लौटा माथ लगाये चंदन।  बापू ऐसी आपकी हिन्दी का वंदन,  स्वीकार करों,  जयन्ती का अभिवादन।। हे चिर स्मरणीय,  वन्दनीय बापू,  स्वीकार करों,   जयन्ती का अभिवादन।।                  ¤¤¤¤¤

राधाष्टमी RADHASHTMI

  राधाष्टमी  ******* भारतीय संस्कृति सदनीरा है । पुण्य दायिका है । मानवीय सरोकारों को सहेजने का आधार रही है । मानवीय जीवन के वैराग्य भाव से अनुराग भाव की ओर ले चलने की संस्कृति ही  भारतीय है। मनुष्य जीवन ही संसार में कर्म आधारित है , अपने कर्म के अनुसार ही इच्छित प्राप्ति  संभव है। इसी क्रम में  मनुष्य को आस्था के स्वरुप देव- देवी सुदृढ़ता प्रदान करते हैं । भारतवर्ष प्रति-दिन पर्व के रुप में जीवनचर्या को  चलायमान  रखता है।  आने वाला दिन,  समय, नये और पुराने को  आधार बनाकर संबल का कार्य कराते हैं।    परम्परागत मान्य  रुप से राधा जी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को प्राकट्य दिवस के रुप में मनाया जाता है । राधा कृष्णप्रिया के रुप में जयदेव के गीतगोविन्द में दिखाई  पड़ती हैं। एक जनश्रुति के अनुसार राधा वृषभानु की पुत्री और कीर्ति की बेटी वृन्दावन वासिनी है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण  की पूर्व जन्म की गोपी की आराधना में  रत रहने के कारण ही राधा का प्राकट्य सम्भव हुआ। यह उनके जन्म के पन्द्रह दिन के बाद की तिथि रही है। एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के द्वारा वरदान प्राप्त कर र

वामन जयन्ती

  वामन जयन्ती  ^^^^^^^^^^^^ भारतीय संस्कृति में  देव राज इन्द्र सदैव अपने पद के प्रति शंकालु रहा है। समुद्र मंथन में देव और असुर के मध्य अमृत को लेकर उपजे विवाद का प्रसंग ही दो धाराओं में बांटने का काम करता है, उसके बाद आधिपत्य और अधिकार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। देवों ने असुरों को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। शुक्राचार्य ने अपनी संजीवनी विद्या से बलि के साथ अन्य असुरों को जीवनदान दिया फ़िर क्या आसुरी सेना ने अमरावती पर चढ़ाई कर दी देवराज इन्द्र समझ गये कि राजा बलि ब्रह्मतेज़ से पोषित हो चुका है।  देवगुरु के आदेश से देवता स्वर्ग छोड़कर भाग गए । अमर धाम अब असुर राजधानी बन गया । शुक्राचार्य ने राजा बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कराना आरम्भ किया । सौ अश्वमेध करके राजा बलि नियम सम्मत इन्द्र बन जायेंगे फ़िर उन्हें कौन हटा सकता है।        विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र ने जब अश्वमेध यज्ञ करना आरम्भ किया । उसी समय इन्द्र देव की मां अदिति घबरा चुकी थी । उन्हें विश्वास हो गया था कि असुर  राजा बलि अपना सौ यज्ञ पूरा करके इन्द्र की पदवीं प्राप्त कर लेगा। राजा बलि विष्णु भक्त वि