अभिनेत्री का उत्तर

 अभिनेत्री का उत्तर  

¤¤¤¤¤¤¤¤¤

एक साक्षात्कार में अन्तरराष्ट्रीय फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राँय  से " कैमरा"शब्द का हिन्दी किसी ने पूछा तो उन्होंने प्रत्त्युत्तपन्नमति भाव से उत्तर दिया और 'प्रतिबिंब पेटी 'शब्द बतलाया । आज यह किसी भी आकार में हो सकती है । 

सेल्फी हाथ में डंडा लेकर समयमान निर्धारित करके भागकर,  अपने होठों को चोंचनुमा, रोते हुए, गाते हुए, हँसते हुए अपने केशों को जैसा चाहिए फेर लिजीए । मन में जो भाव रखिये वैसी फोटो रख लीजिए । चित्र तो उल्टी परिभाषा की छवि देगा और आप उसमें भी खुश होंगे । सम्पादन द्वारा सीधा भी कर लें , लेकिन शब्द अक्षर का क्या होगा, सजीव की निर्जिवता की ओर ले जाने का और फूल माला से श्रृंगारित श्रद्धासुमन की भेंट चढ़ने वाले के प्रति प्रतिक्षण बढ़ता रोमांच  दिखाई पड़ जाएगा।  मोबाईल व्यापार है और आम जनता विशेष रुप से नौजवान युवा इसमें उलझता है । 

अनावश्यक चित्र लड़कियां नहीं रखती और न खीचती परोसती है, भले उन्हें मोबाईल मिले तो खेलकूद कर सकती है । 

प्रतिशतता के हिसाब से  फेसबुक और ह्वाटस्एप पर भी लडकियाँ दूरी बनाए रखने में अपने को सुरक्षित  महसूस  करती है  । पढ़ाई  नौकरी के लिए  ईमेल बहुत है  ।

जहाँ तक हो परीक्षा की अनिवार्यता में फोटो ले जाकर  परीक्षा स्थल पर जमा करना और  केन्द्र  व्यवस्थापक  को मुख्य परीक्षा में उसी को मान्य बनाने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए  । केन्द्रीय परीक्षा की तरह  शुल्क लड़कियों के शून्य होने चाहिए, चाहे जो भी परीक्षा हो । 

समानता पर लाने के लिए कुर्सी देने का अभियान चलाना होगा  । नारी शिक्षा बढ़ावा के लिए नारी ही प्रोत्साहित करे ऑफिस के पुरुष फील्ड में प्रसार प्रचार करें । उनकी रिपोर्ट पर संभावित स्थानों पर से बालिका शिक्षा के लिए काम चले  । गुरु - शिष्य परम्परा ही  उचित होगी । 

शिक्षा केन्द्र मोबाईल फोन परिचालन मुक्त  हो । सभी फोन  प्राचार्य के पास  जमा हो  । नहीं तो  प्राथमिक  शिक्षा  सज्जा और फोटोग्राफी  के  साधन और  मनोरंजन के साथ एक पटरी पर चलने वाली रेलगाड़ी के जीवन की तरह हो जायेंगे  । यह विचार है जो दुरुपयोग रोकते है  । मन एकाग्र बनाते है। अदालत में जाइए तब समझ आ जाएगा। 

आज की समस्याओं का इतिहास रहा है कि गाँव में लड़कियां पढ़ाई के बाहर निकल नहीं सकी, निकल गई तो सुविधाजनक स्थिति नहीं रही, उच्च शिक्षालय भी दूर और मंहगे रहे केन्द्रीय विश्वविद्यालय में थोड़ा-बहुत छूट थी। गाँव के कुछ बीमारियों के प्रति लापरवाह रहे या वैसा ही नाम बच्चों का रख दिया जैसा वह दिव्यांग रहा। तेज आवाज   में बोलना गाँव की जरुरत है स्कूल की  नहीं   

,उपेक्षित बच्चा स्कूल में गुरुजन से छिपता रहा लेकिन गुरुजन आचार्य भाव पिता भाव से, पढ़ाई, दवाई सब कुछ के लिए आगे आते और माता पिता को सजग करते थे  ।कान्वेंट सिस्टम ने कोचिंग ने सब दूरी बना दी पैसा फेको डिग्री खरीदों । शिक्षा व्यापार में बदलकर रह गया इसपर क्या हुआ पता नहीं । दान की चीज दान ही  रहनी चाहिए । सम्प्रदान होना चाहिए । 

  आज की मूल समस्या और अतीत का मूल समाधान में समायोजक गुरु ही था  ।  हकलाते, तुतलाते, और देखने, सुनने की समस्या को अभिभावक तक सहज सरल तरीके से बतला देता था  । छोटा - मोटा इलाज तो  प्राचार्य के माध्यम से  चुपचाप कैम्प से जाँच से दूर हो जाती थी  । आज प्रचार  से  बच्चे  स्कूल  से  भाग जाते हैं  । उच्चारण की अशुद्धि छोटा-बड़ा इ,ई,उ,ऊ को कौन समझायेंगा यह बोलने से ही आयेगा  । चित्र लिपि  से  अनुस्वार  और अनुनासिक नहीं हो सकता है  ।

फिर वही अभिनेत्री के शब्द याद आते है, यह  यह छिछला चित्र तो दे सकता सकता है, कोई कंकरिया न फेंक दे क्योंकि प्रतिबिंब है  ।

                               •••••••••••

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नागरी हिन्दी के संवाहक:महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी

आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और चलता पुस्तकालय

केंचुल