SERAMANDAL OF UTTARAKHAND
मैं अगर बिछड़ भी जाऊँ कभी मेरा ग़म न करना । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरी याद करके कभी आँख नम न करना ।
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तू जो मुड़ के देख लेगा मेरा साया साथ होगा ।
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जब ज़िन्दगी को बहुत-बहुत नजदीक से देखता हूँ ,सोचता हूँ, पाने के लिए कुछ नहीं है, खोने के बहुत कुछ है, लेकिन जो अपने हो तो उनमें कुछ नाम ऐसे है जिनसे कभी नहीं मिला अनाम किन्तु अनन्य परिचित आत्मीय भाई श्री सुमन्त मिश्र, विषम परिस्थित में भी सभी से जुड़कर कुशलक्षेम बाबा विश्वनाथ दरबार का पुण्य प्रसाद सब तक बजरंग बली संकटमोचन बाबा का आशीर्वाद सभी को देने की भावना, ताकि जाने-अनजाने पर नहीं कोई संकट किसी भी समय पर आन नहीं पड़े ऐसे को वंदन नमन है । उनके महान कार्य और योगदान साथ ही लेखनी, जो हमें प्रेरित करती है,उनकी नित्य कृति जो है देखकर,पढ़कर पाओ वही सुखद है । अन्तर्मन में रखने का कोई लाभ नहीं सो आज बागेश्वर के नीलेश्वर और भीलेश्वर चोटी के बीच पहुँच चुका हूँ ।
अपने उत्तराखण्ड सेवाकाल के दूसरे दौर के प्रभार के समय अपने केन्द्राध्यक्ष कार्यभार के अन्तर्गत आकाशवाणी का बागेश्वर केन्द्र जाने का अवसर मिला हांलाकि 1991 में यह स्थान देख चुका था । आज आकाशवाणी है, और वर्ष 1540 से उत्तरायणी मेला और भगवान बागनाथ का तीर्थ क्षेत्र पूरे उत्तराखण्ड आत्मा के रुप में स्थापित हो चुका है,पौराणिक मान्यता में सरयू, गोमती और लुप्तसरस्वती नदी का यह क्षेत्र है,इसके,दाहिनी ओर नीलेश्वर चोटी का पर्वत है और बायीं ओर भीलेश्वर चोटी का पर्वत है नदियां इन्हीं से संरक्षित है सरस्वती लुप्त क्षेत्र के समीप ही श्मशान घाट बनाया गया है कहते है कि शिव के गण चंडी के कहने पर शिव यहाँ आये, यहाँ शिव ब्याघ्र और पार्वती गाय रुप में । भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी है, वर्तमान
सरयू नदी उत्तराखण्ड राज्य के मध्य कुमाऊं क्षेत्र की एक प्रमुख नदी है। यह काली नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी भी है। सरमूल से निकलने वाली सरयू कपकोट, बागेश्वर, सेराघाट और रामेश्वर से बहते हुए पंचेश्वर में काली नदी में गिर जाती है। यही काली नदी जब बहराइच के पास ब्रह्माघाट में घाघरा से मिलती है, तो इनके संगम से बनी नदी को पुनः सरयू ही कहा जाता है, जिसके तट पर अयोध्या शहर बसा है। सरयू नदी पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के बीच दक्षिण-पूर्वी सीमा बनाती है।
सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है । इसे प्लाक्ष्वती, वेदवती भी कहते है । ऋग्वेदमें सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है । यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी। कहते हैं, यह नदी पंजाब राज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरुक्षेत्र,कैथल होती हुई पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती नदी में मिल गई थी। प्राचीन काल में इस सम्मिलित नदी ने राजपूताना के अनेक स्थलों को जलसिक्त कर दिया था। यह भी कहा जाता है कि प्रयाग के निकट तक आकर यह गंगा तथा यमुना में मिलकर त्रिवेणी बन गई थी । कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अंत:सलिला होकर बहती है। मनुसंहिता से स्पष्ट है कि सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था।
गोमती सरयू की एक सहायक नदी है। यह बैजनाथ नगर के उत्तर-पश्चिम में स्थित भटकोट नामक स्थान से निकलती है। गोमती बागेश्वर में सरयू से मिलती है,जो आगे जाकर पंचेश्वर में काली नदी से मिल जाती है।
गोमती घाटी, जिसे बैजनाथ के कत्यूरी राजवंश के नाम पर कत्यूर घाटी भी कहा जाता है, कुमाऊं के प्रमुख कृषि-प्रधान क्षेत्रों में से है। गरुड़ तथा बैजनाथ इस घाटी में स्थित प्रमुख नगर हैं। बैजनाथ मंदिर के पास गोमती नदी में एक बैराज भी स्थित है जिसे गोमती बैराज के नाम से जाना जाता है, यह नदी गरुड़ घाटी से बैजनाथ होती हुई बागेश्वर में सरयू नदी में मिल जाती है।
और भगवान शिव विश्वेश्वर ब्याघ्रेश्वर रुप हुए , यहाँ के लोगों में सरस्वती नदी में आस्था है, मकर संक्रांति पर एक महीने का कार्तिक मेला उत्तरायणी होता है ,इस स्थान कन्यादान नहीं किया जाता है, सरयूतट को स्थानीय बोली में बगड़ कहते है , सरयू नदी में बद्री दत्त पाण्डे ने इसी उत्तरायणी के दिन कुली बेगार ( पहाड़ के लोगों से अंग्रेजों द्वारा बिना पैसे दिये शारीरिक और मानसिक परिश्रम कराना और उसकी पंजिका या रजिस्टर रखना काम नहीं करने पर दण्ड देना ) लिए रजिस्टर डुबोकर आन्दोलन शुरु किया था । यहाँ का मण्डल सेरा कृषि उत्पादन के रूप में ख्याति प्राप्त रहा है,आकाशवाणी बागेश्वर, जो आकाशवाणी अल्मोड़ा के ही कार्यक्रम प्रसारित करता है । उसी के समीप ही माँ चण्डिका जी का मन्दिर है जो दर्शनीय है ....जहां से गोमती और सरयू नदी का संगम देखा जा सकता है.....कहते हैं की सरस्वती नदी भी लुप्त रहती है.....जब हम वापसी कर रहे थे तो अजीबोगरीब दृश्य उपस्थित हो गया अकस्मात् ओलावृष्टि होने लगा, हमारी टैक्सी और ड्राइवर समेत हम सब उस टैक्सी के अन्दर थे ,और जिस दिशा में ओले उसके विपरीत टैक्सी को नृत्य कराने लगा हम समझ रहे थे लेकिन बोल नहीं पा रहे थे, थोडी देर में सड़कें सफेद चादर में बदल गई ,और शान्त माहौल होने के बाद मैंने ड्राइवर से पूछताछ की क्या बात हुई तो जानकारी मिली कि इस नृत्य क्रियान्वयन से टैक्सी के सारे शीशे सुरक्षित रहते हैं ,और गोमती नदी के पुल को पार कर बागनाथ मंदिर आ गए ।
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